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Monday, September 9, 2024
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भगवान शिव का सावन एवं रूद्राभिषेक

हिन्दू पंचाग के अनुसार श्रावण मास वर्ष के एक माह का नाम है जो धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखता है। श्रावण माह भगवान् शिव को समर्पित है और यह माह शिव जी को अत्यन्त प्रिय भी है, इसलिए भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए इस माह में धूमधाम से पूजा-अर्चना करते हैं। श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को ‘श्रावण सोमवार’ के रूप में जाना जाता है और भक्त इस मास में आने वाले प्रत्येक सोमवार को व्रत भी करते हैं। महादेव को प्रसन्न करने का रामबाण उपाय है रुद्राभिषेक। ज्योतिष के जानकारों की माने सही समय पर रुद्राभिषेक करके आप शिव से मनचाहा वरदान पा सकते हैं, क्योंकि शिव के रूद्र रूप को बहुत प्रिय है अभिषेक तो आईए जानते हैं रुद्राभिषेक क्यों है इतना प्रभावी और महत्वपूर्ण।

श्रावण माह में रुद्राभिषेक का महत्व
एक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मृत्युलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगों को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासावश पूछा कि हे नाथ! मृत्युलोक में इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है? भगवान शिव ने कहा- हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है। वह आशुतोष स्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति के लिए अभिषेक करता है। जो मनुष्य गुरू परम्परा प्राप्त रुद्राष्टाध्यायी मन्त्र से अभिषेक करता है, उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूं।

सावन माह में भोलेनाथ का जलाभिषेक करने से भगवान् शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को अवश्य पूर्ण करते हैं। आशुतोष भगवान् सदाशिव की उपासना में रुद्राष्टाध्यायी का विशेष माहात्म्य है। शिवपुराण में सनकादि ऋषियों के प्रश्न करने पर स्वयं शिवजी ने रुद्राष्टाध्यायी के मन्त्रों द्वारा अभिषेक का माहात्म्य बतलाते हुए कहा है कि मन, कर्म तथा वाणी से परम पवित्र तथा सभी प्रकारकी आसक्तियों से रहित होकर भगवान् शूलपाणि की प्रसन्नता के लिये रुद्राभिषेक करना चाहिये।

इससे वह भगवान् शिव की कृपा से सभी कामनाओं को प्राप्त करता है और अन्त में परम गति को प्राप्त होता है। रुद्राष्टाध्यायी मन्त्र द्वारा रुद्राभिषेक करने से मनुष्यों की कुलपरम्परा का भी आनन्द प्राप्त होता है- मनसा कर्मणा वाचा शुचिः संगविवर्जितः। कुर्याद् रुद्राभिषेकं च प्रीतये शूलपाणिनः॥ सर्वान् कामानवाप्नोति लभते परमां गतिम्। नन्दते च कुलं पुंसां श्रीमच्छम्भुप्रसादतः॥ शिवपुराण और लिंगपुराण के अनुसार भगवान् शिव की उपासना करने से व्यक्ति को कई जन्मों के पुण्यों का लाभ प्राप्त होता है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार श्रावण माह में भोलेनाथ को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए रुद्राभिषेक को सबसे महत्वपूर्ण उपाय माना गया है। ऐसा करने से भगवान् शिव की कृपा अवश्य प्राप्त होती है और उनके आशीर्वाद से मनुष्य के जीवन में सुख-समृद्धि व्याप्त होती है। यही कारण है कि श्रावण माह में भगवान् शिव का अभिषेक करना या कराना अत्यन्त शुभ माना गया है।

जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है, वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग भी करता है। अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए। यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना चाहिए। रुद्र भगवान शिव का ही प्रचंड रूप हैं। इनका अभिषेक करने से सभी ग्रह बाधाओं और सारी समस्याओं का नाश होता है। रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ किया जाता है। अभिषेक के कई प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों द्वारा कराना। वैसे भी भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है।’ जलधाराप्रियो शिव’ वह अपनी जटा में गंगा को धारण किये हुए हैं।

रूद्राभिषेक से होने वाले लाभ
आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे हैं, उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए, इसका उल्लेख शिव पुराण में किया गया है। जैसे कि किसी शिव मंदिर में जाकर रुद्राभिषेक कराना बहुत उत्तम माना गया है। किसी ज्योतिर्लिंग पर रुद्राभिषेक का अवसर मिल जाए तो इससे अच्छी कोई बात नहीं। नदी किनारे या किसी पर्वत पर स्थित मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना सबसे ज्यादा फलदायी है। कोई ऐसा मंदिर जहां गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित हो, वहां पर रुद्राभिषेक करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। घर में भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। शुद्ध मिट्टी का पार्थिव लिंग बनाकर रुद्राभिषेक करना परम कल्याणप्रद कहा गया है। शिवलिंग न हो तो अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका अभिषेक कर सकते। बता दें कि भगवान् शिव का अभिषेक करने से विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। ‘जलेन वृष्टि माप्नोति’ यदि वातावरण के अधिक शुष्क होने के कारण अधिक उष्मता बढ़ जाती है या कहीं सूखा पड़ जाता है तो इसके निमित्त वृष्टि (वर्षा) हेतु हमें भगवान् शिव का जल से अभिषेक करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए।

व्याधि (विशेष रोग) की शान्ति हेतु:-
‘व्याधि शान्त्यै कुशोदकै:’ अर्थात् यदि किसी मनुष्य के शरीर में किसी भी प्रकार का कोई रोग विशेष हो गया है तो उसकी शांति हेतु कुश मिश्रित जल से अभिषेक करना चाहिए। इससे अवश्य ही शीघ्र भगवान् आशुतोष की कृपा से उसे उस रोग विशेष से मुक्ति प्राप्त होगी।

पशु प्राप्ति के निमित्त:-
‘दध्ना च पशुकामाय’ अर्थात् पशु प्राप्ति हेतु दधि से भगवान् शिव का अभिषेक करना चाहिए।

लक्ष्मी प्राप्ति हेतु:-
‘श्रिया इक्षुरसेन च’ अर्थात् प्रत्येक मनुष्य धन की इच्छा रखता है, क्योंकि धन से ही मनुष्य समस्त भौतिक सामग्रियों का भोग कर पाता है। अतः लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु गन्ने के रस से भगवान् शिव का अभिषेक हमें करना चाहिए तथा ‘मध्वाज्येन धनार्थी’ धन प्राप्ति हेतु मधु और घी से विशेष अभिषेक करना चाहिए।

मोक्ष प्राप्ति हेतु:-
मुमुक्षुस्तीर्थ वारिणा” अर्थात् मोक्ष प्राप्ति हेतु तीर्थ के जल से अभिषेक करना चाहिए।

संतान प्राप्ति हेतु:-
“संतान माप्नोति पयसा” अर्थात् संतान-सुख प्रत्येक माता-पिता की कामना होती है परन्तु कुछ ऐसे भी दम्पति होते हैं जिनके जीवन में विभिन्न समस्याओं के रहते संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो जाती है। अतः इस समस्या से निवृत्ति हेतु दूध द्वारा भगवान् शिव का अभिषेक करना चाहिए।

मृत संतान उत्पत्ति से मुक्ति हेतु करें इस द्रव्य विशेष से अभिषेक:—
‘वन्ध्या वा काकवन्ध्या मृतवत्सा च यांगना’ अर्थात् वन्ध्या, काकवन्ध्या (मात्र एक संतान उत्पन्न करने वाली) अथवा मृतवत्सा स्त्री (जिनकी संतान उत्पन्न होते ही मृत हो जाती है) तो उसकी निवृत्ति हेतु गाय के दूध से अभिषेक करना चाहिए।

अज्ञान से निवृत्ति हेतु:-
‘शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धि: जड़ा भवेत्’ अर्थात् मेधा वृद्धि और अज्ञान निवृत्ति हेतु शक्कर मिश्रित दूध से अभिषेक करना चाहिए।

शत्रुनाश के निमित्त:-
‘सार्षपेणैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह’ अर्थात् शत्रु नाश हेतु सरसों के तेल से अभिषेक करना चाहिए।
इस प्रकार विभिन्न द्रव्यों से अभिषेक का यह फल है, इसलिए मनुष्य को जिस वस्तु प्राप्ति की अभिलाषा हो उसके निमित्त द्रव्य से ही अभिषेक करना चाहिए। इस प्रकार विभिन्न समस्याओं से मुक्ति प्राप्ति हेतु अभिषेक का माहात्मय शास्त्रवर्णित है। रुद्राभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। तांबे के बर्तन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए। तांबे के पात्र में जल का तो अभिषेक हो सकता है लेकिन तांबे के साथ दूध का संपर्क उसे विष बना देता है, इसलिए तांबे के पात्र में दूध का अभिषेक वर्जित होता है।

डॉ. अमरनाथ उपाध्याय
अर्चक/पुजारी
श्री काशीविश्वनाथ मन्दिर
वाराणसी, उत्तर प्रदेश।

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