गोविन्द वर्मा
बाराबंकी। महर्षि विद्या मंदिर लखपेड़ा बाग में गुरु पूर्णिमा का पर्व अध्यापक, अध्यापिकाओं व छात्रों ने मिलकर हर्षोल्लास के साथ मनाया। पर्व की तैयारी ध्यान शिक्षिका रूपाली शर्मा व आशा अवस्थी ने किया। गुरु परंपरा पूजन के साथ ध्यान योग साधना का भी अभ्यास किया गया।
सभी ने मिलकर एक साथ ध्यान, प्राणायाम किया। ज्ञान रूपी दीपक की ज्योत प्रधानाचार्य प्रदीप श्रीवास्तव ने जलाकर तमसो मा ज्योतिर्गमय का प्रारंभ किया। इसी के साथ समस्त अध्यापक अध्यापिकाओं ने भी दीप प्रज्वलन का हिस्सा बनकर कार्यक्रम में सहभाग किया।
इस मौके पर प्रधानाचार्य ने कहा कि दीपक ज्ञान का प्रतीक है जो अज्ञानता रूपी अंधेरे को मिटाता है, इसलिए सबने सामूहिक रूप से ज्ञान के दीपक को निरंतर जलाए रखने का आवाहन गुरु परंपरा पर्व पर किया। गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
भारतीय परंपरा में श्री कृष्ण द्वैपायन जिन्होंने सर्वप्रथम ऋग्वेद की ऋचाओं का संकलन किया, इसीलिए उनको वेदव्यास भी कहा जाता है। माना जाता है कि उनका जन्म आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसलिए गुरु पूर्णिमा का भारतीय पर्व उसी दिन मनाया जाता है। भारतीय ज्ञान का प्रारंभिक स्रोत वेद हैं, उपनिषद का भी आधार वेद है। ब्राह्मण ग्रंथों का भी आधार वेद हैं, ऋग्वेद में देवी देवताओं के आह्वान के मंत्र हैं।
यजुर्वेद में उनका आह्वान कैसे होगा? उनका आसन कैसे बनेगा, कैसे उनकी पूजा होगी, उसका पूरा विधि-विधान वर्णित है। सामवेद जिसको संगीत का वेद कहा जाता है, स्वर वेद भी कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि अथर्ववेद को समस्त वेदों में नव वेद व ज्ञान संपदा का स्रोत माना जाता है।
भारतीय परंपरा में बहुत सारे गुरुओं की जयंती मनाई जाती है— जैसे गुरु पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा, रविदास जयंती, गुरुनानक देव पर्व और वर्तमान में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस। गुरु पूर्णिमा सनातन काल से गुरु परंपरा का परिचायक है। प्रधानाचार्य ने अपने भाषण के दौरान उपरोक्त ज्ञान देने के साथ समस्त उपस्थित जनों को गुरु पूर्णिमा पर्व की बधाई दी।इस अवसर पर शिक्षक राम रतन, अतुल द्विवेदी, रोहित बाजपेई, अनुपम राजपूत, अलका श्रीवास्तव, संजीव श्रीवास्तव सहित विश्व शांति आंदोलन के संवाहक छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।