Home JAUNPUR Jaunpur: श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन भगवान के 24 अवतारों का वर्णन...
चन्दन अग्रहरि
शाहगंज, जौनुपर। साड़ी संसार द्वारा आयोजित वरदान हॉस्पिटल के समीप पब्लिक इंटर कॉलेज में शनिवार को 7 दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा व ज्ञान यज्ञ का आयोजन हुआ। प्रयागराज से पधारे परमपूज्य शांतनु जी महाराज ने कहा कि दूसरे दिन समस्त भक्तजनों के तत्वावधान में शुकदेव जन्म, परीक्षित श्राप और अमर कथा का वर्णन करते हुए बताया कि “नारद जी के कहने पर पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा कि उनके गले में जो मुंडमाला है, वह किसकी है तो भोलेनाथ ने बताया वह मुंड किसी और के नहीं, बल्कि स्वयं पार्वती जी के हैं। हर जन्म में पार्वती जी विभिन्न रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती शंकर जी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते पार्वती ने हंसते हुए कहा हर जन्म में क्या मैं ही मरती रही। शंकर जी ने कहा कि हमने अमर कथा सुन रखी है। पार्वती जी ने कहा कि मुझे भी वह अमर कथा सुनाइए शंकर जी पार्वती जी को अमर कथा सुनाने लगे।
उन्होंने बताया कि शिव-पार्वती के अलावा सिर्फ एक तोते का अंडा था जो कथा के प्रभाव से फूट गया, उसमें से श्री सुखदेव जी का प्राकट्य हुआ। कथा सुनते सुनते पार्वती जी सो गई, वह पूरी कथा सुखदेव जी ने सुनी और अमर हो गए। शंकर जी सुखदेव जी के पीछे उन्हें मृत्युदंड देने के लिए दौड़े। सुखदेव जी भागते—भागते व्यास जी के आश्रम में पहुंचे और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गए। 12 वर्ष बाद श्री सुखदेव जी गर्व से बाहर आए इस तरह श्री सुखदेव जी का जन्म हुआ।
कथा व्यास ने बताया कि भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।
कथा व्यास ने कहा कि भागवत के 4 अक्षर हैं। इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है। इसके साथ भागवत के छह प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार नारद जी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्म, कुन्ती देवी के सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती है, क्योंकि दुख में ही तो गोविन्द का दर्शन होता है।
जीवन की अन्तिम बेला में दादा भीष्म गोपाल का दर्शन करते हुये अद्भुत देह त्याग का वर्णन किया। परीक्षित को श्राप कैसे लगा तथा भगवान श्री शुकदेव उन्हें मुक्ति प्रदान करने के लिये कैसे प्रगट हुये इत्यादि कथाओं का भावपूर्ण वर्णन किया। कथा का संचालन शुभम् जी, वीरेंद्र जी एवं रचित जी ने संयुक्त रूप से किया। इस अववसर पर तमाम लोगों की उपस्थिति रही।




















