पाखण्डवाद पर करारी चोट है प्रेमचन्द का साहित्य

गोविन्द वर्मा
बाराबंकी। गरीब, निर्धन एवं महिलाएं ही देश की संस्कृति के संवाहक रहे हैं। प्रेमचंद के साहित्य में ऐसे ही पात्रों के माध्यम से संस्कृति को जीवित और संवर्धित करने का प्रयास है। उक्त उद्गार राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डा. राम बहादुर मिश्र अध्यक्ष अवध भारती संस्थान ने प्रेमचंद की 145वीं जयंती पर आयोजित विचार गोष्ठी में व्यक्त किए। डॉ. विनय दास अध्यक्ष साहित्यकार समिति ने कहा साहित्य व्यापार का नहीं, बल्कि समाज शोधन का माध्यम है। साहित्य मशाल की तरह उजाला देते हुए मार्गदर्शन करने वाला होना चाहिए। डा. कुमार पुष्पेंद्र ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के पात्र यथार्थ जीवन जीते नजर आते हैं। इनका साहित्य मानवीय संवेदनाओं को उकेरते हुए पाखंडवाद पर करारी चोट करता है।
साहित्यकार डा. सत्या सिंह ने कहा कि अपने समय, समाज में प्रचलित संस्कृतनिष्ठ हिंदी की साहित्य धारा के विपरीत आम जन की समझ में आने वाली सरल हिंदी का प्रयोग करके प्रेमचंद ने अभावग्रस्त व पाखंडवाद से जनित समस्याओं पर समाधान प्रस्तुत किए हैं। प्राचार्य डॉ. बलराम वर्मा ने कहा कि अपने विपुल साहित्य में उठाए गए मानवीय जीवन के संवेदनशील विमर्शों के कारण प्रेमचंद प्रत्येक कालखंड में प्रासंगिक रहेंगे। महाविद्यालय की छात्राओं में अंशिका राजपूत ने मंत्र कहानी का पाठ किया तो संजना गुप्ता ने कहानी के तत्वों के आधार पर कहानी की समीक्षा प्रस्तुत की। अंशिका राज ने प्रेमचंद की एक कविता का सस्वर पाठ किया तथा अंजली रावत ने कहानी ईदगाह पर समीक्षात्मक परिचर्चा प्रस्तुत की।
अवध भारती संस्थान के सचिव प्रदीप सारंग के संयोजन व संचालन में संपन्न विचार गोष्ठी का शुभारंभ डा. अंबरीष अम्बर की वाणी वंदना से हुआ। गोष्ठी में संतकवि बैजनाथ के वंशज प्रताप सिंह वर्मा, सेवानिवृत्त जिला पंचायत राज अधिकारी अनिल श्रीवास्तव, महाविद्यालय के चीफ प्राक्टर डा. राम सुरेश, शैक्षिक क्वार्डिनेटर डा. दिनेश सिंह, डा. अर्चना यादव ने भी अपने उद्गार व्यक्त किये।

 

 

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