जटा में गंगा माँ पार्वती वामांग में,
शिव भोले विराजते हैं कैलाश में,
नंदी गण नृत्य करते हैं दरबार में,
ध्यान धरते शिव सदैव श्रीराम में।
शीतल मलयज में बैठे हैं शिव,
जो अजर अमर अविनाशी हैं,
ध्यान धरत गन्धर्व सुर सातस्वर,
शिवजी राग रागिनी मधुरासी हैं।
महादेव भोले कैलाश सुशोभित,
हिमाद्रि तुंग उत्तुंग शिखर स्वामी,
षड्ऋतु शोभित व्योम चराचर हैं,
प्रकृति सेव्य कराल भाल नामामी।
ऋषि मुनि सुर असुर पूजित शिव,
ब्रह्मा, विष्णु निहारत निसिदिन हैं,
ऋद्धि-सिद्धि के दाता शिवशंकर,
नित सच्चिदानंद आनन्दराशी हैं।
आदित्य जिनके सुमिरन से कटते
संकट, काल कवल कठिनतर हैं,
त्रिशूलधर शिव का नाम निरन्तर,
प्रेमभक्ति से जो शिव ध्यावत हैं।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’ लखनऊ।




















