जगह जगह ठेके खुले,
लगा रहे हैं जाम,
पी पीकर गिरते फिरें,
क्या सुबह क्या शाम,
अंग्रेज़ी देशी पियें
पियें विस्की और रम,
बियर बार हैं खुल गये,
रातों दिन हे राम।
महंगाई की रो रहे,
रोटी मिले न दाल,
दारू महँगी हो भले,
पीना है हर हाल,
यारों की महफ़िल सजे,
हर बार हर माल,
ठेके वाले बन रहे
देखो कैसे मालामाल।
पीने वालों का नहीं
निश्चित कोई दिन,
चौबीस घंटे पी रहे
बिलकुल होकर टुन्न,
सावन भादों भी पियें
पीते बारह मास,
आ जाये बरसात तो
खायें पकौड़ा साथ।
आदित्य हिंग्लिश बोलते
क़छू समझ ना आय,
पर झूठ नहीं वे बोलते
सब कुछ सच क़हि जायँ,
सब कुछ सच कहि जायँ
सुनो हो पीने वालो,
बुरा रोग है दारू पीना
सुनो भाई दारू वालो।
कर्नल आदिशंकर मिश्र ‘आदित्य’
जनपद—लखनऊ