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Monday, September 9, 2024
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जीवन के हर पल को समर्पण के साथ जीने का नाम है क्षेम

  • ‘…तुम कस्तुरी केश न खोलो, सारी रात महक जाएगी’ गीत आज भी है लोगों की जुबां पर

    प्रेम, वेदना के साथ सकारात्मक सोच के कवि थे डॉ. क्षेम

    जयन्ती (2 सितम्बर) पर विशेष

मनुष्य जितना अधिक शांत होता है, उसकी सफलता, उसका प्रभाव, उसकी भलाई की शक्ति उतनी ही अधिक होती है। जिसने संदेह, भय, प्रेम और वेदना पर विजय पा ली, समझिए उसने असफलता पर विजय पा ली। आज कोई भी अकेले दुनिया को नहीं बदल सकता लेकिन पानी में एक पत्थर फेंककर कईं लहरें पैदा की जा सकती हैं। ऐसी ही प्रेम, वेदना, प्रेरणा, समर्पण और सकारात्मक सोच की लहरें पैदा करने वाली जौनपुर के साहित्य की शख्सियत थे डा. श्रीपाल सिंह क्षेम।

वह भारतीय साहित्य के एक प्रतिष्ठित और प्रख्यात कवि, गीतकार और साहित्यकार थे। उनका जन्म 2 सितंबर 1922 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर के बशारतपुर गांव में हुआ था। सामान्य किसान के घर में पले—बढ़े बेटे ने साहित्य की दुनिया में ऐसी छाप छोड़ी, जो अद्भुत, अद्वितीय और अविस्मरणीय है। साहित्य जगत में उनके नाम के साथ जिस तरह से “क्षेम” जुड़ा उसी तरह का उनका व्यवहार भी था। क्षेम का मतलब सुख, चैन, कुशल, मंगल, आनंद, अभ्युदय, कल्याण, मुक्ति और ऊर्दू में खैरियत होता है।
डा. क्षेम की साहित्यिक यात्रा संघर्षों से भरी थी परंतु उनका साहित्यिक समर्पण और कड़ी मेहनत उन्हें हिंदी साहित्य जगत के शिखर पर पहुंचाने में सफल रहे। उन्होंने अपने जीवन के हर पहलू को काव्य और साहित्य के माध्यम से अभिव्यक्त किया, चाहे वह जीवन की कठिनाइयाँ हों या फिर प्रेम, वेदना और सामाजिक परिवेश।
उनकी रचनाओं में जहां जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण और सकारात्मक सोच दिखाई देती है, वहीं समाज में व्याप्त कुरीतियों, देशभक्ति और अन्याय पर भी प्रहार दिखता था।
“एक पल ही जियो, फूल बनकर जियो” जैसे उनके प्रेरणादायक गीत आज भी पाठकों और श्रोताओं के हृदय को छूते हैं। इसी तरह राष्ट्र की रागिनी वंदन से कम नहीं होती। जन्म की भूमि भी नंदन से कम नहीं होती। आओ चुटकी से उठा माथ से लगा ले हम।
देश की धूल भी चंदन से कम नहीं होती। नाव तूफान से बचा लाए हम। अब किनारों से बच जाए तो जानिए। संकल्प सारे बिखर गए होते… गीत मेरे न बचाते मुझको। तो हम कब के मर गए होते। सोयी आग दहक जाएगी… तुम कस्तूरी केश न खोलो। सारी रात महक जाएगी। उनके ये गीत न केवल जीवन को पूरी तरह जीने की प्रेरणा देता है, बल्कि हर क्षण को सुंदर और अर्थपूर्ण बनाने की सीख भी देते है। उनके गीतों में मानवता, प्रेम और शांति की भावना स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
डा. क्षेम के काव्य और साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों और सम्मान से नवाजा गया। उनकी रचनाएँ समय के साथ और भी प्रासंगिक होती गईं और आज भी वे नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनी हैं।
“मैं गीत रचूं अगवानी में” उनके उन गीतों में से एक है, जिसमें जीवन की अनिश्चितताओं के बीच भी सकारात्मकता और आशा का संचार होता है। उनके जीवन का संदेश यह था कि कठिनाइयों के बावजूद हमें जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए। “पांव में हो थकन, अश्रु भीगे नयन, राह सूनी मगर गुनगुनाते चलों” जैसे शब्दों में उन्होंने अपने संघर्षों और अनुभवों को कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है।
उनके साहित्य में संघर्ष, प्रेम और जीवन की गहराई के तत्वों का संगम देखने को मिलता है। डा. क्षेम इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपने अध्ययन के दौरान ही साहित्य की सर्वोच्च संस्था परिमल से जुड़ गये थे। उसी दौर में आपका संपर्क डा. धर्मवीर भारती, डा. जगदीश गुप्त, डा. रघुवंश, प्रो. विजय देव नारायण, सुमित्रा नंदन पंत, महादेवी वर्मा, कथाकार पहाड़ी, नरेंद्र शर्मा, डा. हरिवंश राय बच्चन, गंगा प्रसाद पांडेय, प्रभात शास्त्री जैसे कई कवि और साहित्य की शख्सियत से उनकी मुलाकात हुई।
उन्हें हिंदी सेवा संस्थान प्रयाग से साहित्य महारथी, हिंदी साहित्य हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश से साहित्य भूषण, मध्य प्रदेश नईगढ़ी से ठाकुर गोपाल शरण सिंह काव्य पुरस्कार, सम्मेलन प्रयाग से साहित्य वाचस्पति, वीर बहादुर पूर्वांचल विश्वविद्यालय से पूर्वांचल रत्न की उपाधि मिली थी। आपकी प्रमुख कृतियों में नीलम तरी, ज्योति तरी, जीवन तरी, संघर्ष तरी, रूप तुम्हारा : प्रीत हमारा, रूपगंधा :गीत गंगा, अंतर ज्वाला, राख और पाटल, मुक्त कुंतला,मुक्त गीतिका, गीत जन के, रूप गंगा, प्रेरणा कलश, पराशर की सत्यवती। कृष्ण द्वैपायन महाकाव्य का संपादन सशक्त कृतियां थीं।
डा. श्रीपाल सिंह क्षेम ने न केवल साहित्य के क्षेत्र में, बल्कि समाज के प्रति भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। उन्होंने साहित्य के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया और नई पीढ़ी को साहित्य के प्रति जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए हम उनके साहित्यिक योगदान को याद करते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं कि जीवन की कठिनाइयों के बावजूद हमें आगे बढ़ते रहना चाहिए और हर पल को आनंद के साथ जीना चाहिए। डा. श्रीपाल सिंह क्षेम की जयंती पर उनके अमूल्य योगदान को नमन करते हुए हमें उनकी रचनाओं से प्रेरणा लेने की जरूरत है। उनका जीवन और साहित्य हमें सिखाता है कि जीवन के हर पल को महत्व दें और उसे पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ जीयें।
डा. क्षेम की उपलब्धियां की बात करें तो उन्हें देश की महत्वपूर्ण संस्थानों से ये पुरस्कार मिले— साहित्य महारथी हिन्दी सेवा संस्थान प्रयाग। मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार प्रा.हि.सा. सम्मेलन कानपुर अधिवेशन, साहित्य वाचस्पति अखिल भारतीय हि.सा.सा. प्रयाग इलाहाबाद। राख और पाटल गीत संग्रह पूर्व हिन्दी समिति उत्तर प्रदेश लखनऊ। छायावाद की काव्य साधना, पूर्व हिन्दी समिति उत्तर प्रदेश लखनऊ। रघुराज पुरस्कार,समीक्षा,पूर्व विंध्य प्रदेश शासन। पूर्वांचल रत्न, वीर बहादुर सिंह पूर्वाचल विश्व विद्यालय जौनपुर।
गोपाल शरण सिंह प्रथम काव्य-पुरस्कार नयीगढ़ी रीवां। साहित्य भूषण हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश। मधुलिमये पुरस्कार हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश लखनऊ। इन पुरस्कारों ने जौनपुर जिले के साहित्य के कद को ऊंचा कर दिया। साथ ही यह भी साबित कर दिया की मुगल काल में तालीम के लिए चुना गया। इस जिले की माटी में भी मां वाग्देवी का वास है, इसलिए यहां की प्रतिभाएं विभिन्न क्षेत्रों में देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपना परचम लहरा रही है।
डॉ. सुनील कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर जनसंचार विभाग
पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर।

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