-
प्रेमिका की मां को लगा पत्थर तो बन गयी बात
डा. प्रदीप दूबे
सुइथाकला, जौनपुर। कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। यद्यपि कवि दुष्यंत की यह पंक्तियां यह संदेश देती हैं कि कोई भी कार्य असम्भव नहीं होता, उस कार्य में सफलता पाने के लिए सही मन और पक्के इरादे की जरूरत होती है लेकिन कविता की यह पंक्तिया स्थानीय क्षेत्र के एक प्रेमी-युगल के लिए वरदान साबित हुई।
प्रेमी-युगल की यह पटकथा अपने में विस्मय और कौतूहल से भरी हुई है जहां क्षेत्र की एक लड़की का पड़ोस के ही एक गैरबिरादरी लड़के से प्रेम हो गया।
प्रेमी-युगल 7 जन्मों का साथ निभाने की कसम खाकर परिवार वालों से बचते हुए एक दूसरे से छिप छिपकर मिलते रहे। दो वर्षों से चल रहे प्रेम मिलन के सिलसिले में लड़की उस समय 16 वर्ष की थी जबकि लड़का 18 वर्ष का था। लड़की चाहती थी कि हमारा प्यार इसी तरह छिपकर चलता रहे, जब दो साल बीत जाय और वह कानूनी रूप से बालिग हो जाय तब दोनों विवाह के बन्धन में बंध जाएं। दोनों के बीच प्यार का सिलसिला चलता रहा।
दोनों के मिलन में मोबाइल एक बाधा थी कि लड़के के पास मोबाइल फोन था लेकिन लड़की के पास मोबाइल नही था जिसका रास्ता निकालते हुए लड़की ने प्रेमी को एक फार्मूला सुझाया कि रात में जब परिवार वाले सो जाएं तो तुम हमारे घर पर एक पत्थर फेंक देना मैं तुम्हारी उपस्थिति जान जाऊंगी और मिलन में कोई बाधा नही होगी।
फार्मूला सटीक बैठा और इसी से दोनों दो वर्षों से एक—दूसरे से मिलते रहे। प्रेम की पटकथा में एक दिन नया मोड़ तब आया जब रात में प्रेमी द्वारा फेंका गया पत्थर प्रेमिका के घर पर न गिरकर बाहर सो रही उसकी माँ को जा लगा।
दोनों की करतूत से अनजान लड़की की मां रात में पत्थर फेंकने वाले लड़के को पहचान गयी और दूसरे दिन लड़के के विरुद्ध शिकायत लेकर स्थानीय थाने पर पहुंच गई। पुलिस त्वरित कार्रवाई कर लड़के को थाने ले आई। लड़के ने सहजता से अपनी प्रेम कहानी मौके पर मौजूद उपनिरीक्षक को सुनाई।
दोनों पक्ष की सहमति के उपरांत लड़की थाने पर बुलाई गई,जहां उसने भी अपने को बालिग बताते हुए लड़के के साथ शादी करने की बात कह दी। पुलिस द्वारा दोनों पक्ष की सहमति पूछी गई तो प्रेमी-युगल युगल के माता-पिता भी दोनों की शादी के लिए खुशी से अपनी सहमति दे दी। दोनों परिवार हंसी-खुशी घर वापस लौट गये और दोनों की शादी के लिए अगली तैयारी शुरू कर दिये।