सुना था अच्छे व श्रेष्ठ रचनाकार,
कवि चलते चलते जो देख लेते हैं,
उस पर तुरन्त कविता लिख देते हैं,
वही तो अब हम सभी देख रहे हैं।
आपकी प्रतिक्रिया को ही
केवल नमन नहीं मैं करता हूँ,
आपकी बृहमलीनता की भी
अंतर्मन से मैं कद्र करता हूँ।
कविता में लीन होना भी उतना ही
उत्तम होता है जितना ब्रह्मलीनता में,
विश्वास अगर है इन दोनो के प्रति,
तो नमन अवश्य है ऐसी प्रवीणता में।
चमकते सूर्य को दीपक दिखाना क्या,
चाँदनी रात में जुगनू का उजाला क्या,
धरती-अम्बर के मध्य सुरभित सुषमा,
सीमाहीन सागर तट की सीमा क्या।
पाठकों, श्रोताओं की आकांक्षा
में पूर्णरूप से खरे उतर रहे हो,
किसी की प्रशंसा या आलोचना
में निर्विवाद होकर खड़े हो रहे हो।
जब साधारण संवाद कविता के
माध्यम से कोई कर सकता है,
आदित्य रचनाधर्मिता की तुलना
क्या साधारण कवि कर सकता है?
कर्नल आदिशंकर मिश्र ‘आदित्य’
जनपद—लखनऊ