आनन्द देव
2 अक्टूबर (गांधी जयंती) राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और उनके आदर्शों को स्मरण करने का अवसर है। गांधी जी ने सत्य, अहिंसा, साम्प्रदायिक सौहार्द जैसे सिद्धांतों पर आधारित एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जहां सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग समान रूप से न्याय और शांति का अनुभव कर सकें परंतु आज जब भारत सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं से जूझ रहा है, गांधी जी के ये आदर्श और भी प्रासंगिक हो गए हैं।
सत्य और आधुनिक समाज
गांधी जी का जीवन सत्य के प्रति उनकी दृढ़ता का उदाहरण था। उन्होंने कहा था, “सत्य ही ईश्वर है,” और उनके लिए सत्य केवल व्यक्तिगत नैतिकता नहीं थी, बल्कि सार्वजनिक जीवन का भी आधार था। वर्तमान समय में, जब झूठी खबरें और भ्रामक प्रचार समाज को विभाजित कर रहे हैं, सत्य की रक्षा करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है।
मीडिया के लिए यह चुनौती और भी बड़ी है, क्योंकि समाज को सही दिशा में ले जाने की जिम्मेदारी मीडिया के कंधों पर है। आज फेक न्यूज के माध्यम से समाज में नफरत और संदेह फैलाया जा रहा है जो गांधी जी के सत्य और समानता के सिद्धांतों के विपरीत है। मीडिया को अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करते हुए सत्य के प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिए, ताकि समाज में विश्वास और सद्भाव बनाए रखा जा सके।
अहिंसा और आज का भारत
गांधी जी के जीवन का दूसरा प्रमुख स्तंभ अहिंसा था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अहिंसा का उपयोग कर यह सिद्ध कर दिया कि हिंसा के बिना भी बड़े परिवर्तन संभव हैं।
आज जब समाज में हिंसा हर रूप में व्याप्त है—चाहे वह जातीय हिंसा हो, धार्मिक हिंसा हो या घरेलू हिंसा—गांधी जी का अहिंसा का संदेश और भी महत्वपूर्ण हो गया है। अहिंसा सिर्फ शारीरिक हिंसा से बचने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक, भावनात्मक और भाषाई हिंसा से भी दूर रहने की शिक्षा देती है। यह हमें संयम, सहिष्णुता और सहानुभूति के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
साम्प्रदायिक सौहार्द की आवश्यकता
गांधी जी के लिए साम्प्रदायिक सौहार्द भारतीय समाज की आत्मा थी। उनका मानना था कि भारत की विविधता उसकी सबसे बड़ी ताकत है और सभी धर्मों को समान सम्मान मिलना चाहिए।
आज के समय में जब समाज में साम्प्रदायिकता और ध्रुवीकरण बढ़ता जा रहा है। हमें गांधी जी के सौहार्द के सिद्धांतों पर लौटने की आवश्यकता है। हालात इतने चिंताजनक हो गए हैं कि आज समाज में धर्म और जाति के आधार पर नफरत फैलाई जा रही है। गांधी जी के विचार हमें याद दिलाते हैं कि धार्मिक विविधता में ही हमारी एकता निहित है और इसी से हम एक सशक्त और समावेशी भारत का निर्माण कर सकते हैं।
गांधी जी के विचारों की उपेक्षा
पिछले साल जौनपुर के केराकत तहसील के एक गांव में एक सामाजिक कार्यकर्ता साथी ने गांधी जयंती मनाने का निर्णय लिया। जब वह गांव में गांधी जी की तस्वीर खोजने निकला तो घर-घर तलाश की परंतु किसी भी घर में बापू की तस्वीर नहीं मिली।
यह घटना केवल एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे समाज में गांधीजी के विचारों की घटती उपस्थिति की ओर इशारा करती है। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। जब देश का ग्रामीण भारत जो कभी गांधीजी के आदर्शों का केंद्र था, उनके विचारों को भूल रहा है तो यह हमारी सामूहिक चेतना के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
वर्तमान समय में गांधीजी के सिद्धांतों की प्रासंगिकता
गांधी जी के विचार हमें यह सिखाते हैं कि एक सशक्त, न्यायपूर्ण और समावेशी समाज का निर्माण केवल सत्य, अहिंसा और साम्प्रदायिक सौहार्द पर आधारित हो सकता है।
आज जब भारत सामाजिक, राजनीतिक और सांप्रदायिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, हमें गांधीजी के विचारों की ओर लौटने की आवश्यकता है। समाज में जिस प्रकार से हिंसा, नफरत और असमानता बढ़ रही है, वह इस बात की पुकार है कि हम गांधीजी के दिखाए मार्ग पर चलें। उनके सिद्धांत आज भी हमें सही दिशा दिखाते हैं और भविष्य के लिए प्रेरणा प्रदान करते हैं।
गांधी जयंती का यह अवसर हमें स्मरण दिलाता है कि गांधी जी के विचार केवल इतिहास का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके विचारों को समाज के हर कोने तक पहुंचाया जाए और उन्हें फिर से जीवित किया जाए, ताकि एक शांतिपूर्ण, समावेशी और न्यायपूर्ण भारत का निर्माण हो सके।