प्रकृति का नियम है कि हिरणकश्यप के घर ही प्रहलाद का जन्म होता है। कीचड़ में ही कमल खिलता है। समय और समाज द्वारा किए गए गहरे घाव की पीड़ा की कोख से ही कविता की कोपलें फूटती है।
“वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान, निकलकर नैनो से चुपचाप बही होगी कविता अनजान”। कविता कवि के जीवन के झंझावातों से भरे उपवन में गमकने वाली कली है जो समय पाकर अपनी अनुभूतियों से पाठकों को मदमस्त कर देती है, जीवन को तरोताजा कर देती है, दिल दिमाग को सुकून से भर देती है।
कवि की सोच जब खुली किताब होती है तो उसकी स्वानुभूतियां पाठकों के मन मस्तिष्क से एकाकार हो जाती है। इस नज़रिए से कविवर बालेश्वर दयाल जायसवाल की सघ: प्रकाशित तृतीय काव्य-कृति “अनुभूतियों के मोरपंख” बेजोड़ हैं, लाजवाब है, अद्भुत है।
कद्दावर राजनेता से कवि के रूप में नया अवतार लेने वाले बालेश्वर दयाल जायसवाल की प्रथम काव्य कृति “अंतर्मन के रंग अनेक” (2015 ई.) तथा दूसरी काव्य कृति “उजली धूप पर तैरता यथार्थ” (2016 ई.) में आई थी जिसका लोकार्पण क्रमशः बिहार-बंगाल के महामहिम राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी तथा तत्कालीन केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत के कर कमलों में संपन्न हुआ था।
अब कवि की 84 जन्मतिथि पर कवि की तीसरी काव्य कृति की सतत सृजन शीलता की गवाही देते हुए एक बार फिर पाठकों के समक्ष उपस्थित हैं। कविवर, अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और फिलहाल वरीष्ठ राष्ट्रीय संरक्षक हैं जबकि इनकी काव्य कृतियों को सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने वाले प्रकाशक-सम्पादक जायसवाल समाज के ही महान साहित्यकार तथा जनमानस जागृति के प्रधान संपादक प्रो. (डॉ.) अरुण मोहन भारवि है।
अनुभूतियों के मोरपंख को संपादित करते हुए डॉ. अरुण मोहन भारवि ने लिखा है कि कविवर बालेश्वर दयाल जायसवाल 80 पार की उम्र में भी अपना साहित्य-सृजन-यज्ञ सतत जारी रखे हुए है। आज वे अपनी तीसरी काव्यकृति अनुभूतियों के मोर पंख के साथ अपनी रचना धर्मिता की गवाही देते हुए पाठकों के दरबार में उपस्थित हैं।
कविवर जायसवाल एक बहुधर्मी हस्ताक्षर है। ये छायावादोत्तर हिंदी कविता के धारदार हस्ताक्षर के रूप में मालवा की मिट्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदी काव्य जगत में छायावाद का अविर्भाव स्थूल के प्रति सूक्ष्म के विद्रोही तेवर के रूप में हुआ था जबकि छायावादोत्तर हिंदी कविता पर प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और समकालीन कविता का ठप्पा चस्पा हुआ है।
कविवर जायसवाल मालवा की धरती के एक ऐसे प्रख्यात कलमची है जिनकी कलम पर कभी भी किसी वाद का ठप्पा नहीं लगा है, किसी वाद का दाग नहीं लगा है। आप वाद के दाग से पूर्णता बेदाग कवि हैं और यही आपकी कविता की खास विशेषता भी है।
कविवर, अपनी पहली काव्यकृति- “अंतर के अंतर्मन के रंग अनेक” से, जिनकी कविताएं पाठकों को सुबह की ताजगी भरी हवा के तरह पाठकों के जहन में सुकून का अहसास कराती है।
शबनम से भीगी प्रातः की घास की तरह ताज़ी, बालक की हँसी की तरह मासूम और चित्रकार की कल्पना सी भोली कविताएं शरमाती हुईं धीरे—धीरे पाठकों के दिल दिमाग पर छा जाने की क्षमता रखती है। बिजली चमकने के बाद बादल भी गरजते हैं, तुम्हें शिकवा है इस बात का कि देखने को तरसते हैं, अब क्या बताऊँ इसे गम ए ज़िंदगी के अफशांने तुम्हें, यहाँ तो हालात हैं, ऐसी की खुशी में भी आंसू ही निकलते हैं।
इस प्रथम काव्य कृति ने पाठकों का भरपूर मनोरंजन किया। कवि की कविताई से गौरवपूर्ण ढंग से कवि को एक सकारात्मक पहचान दी। सन् 2016 में कवि के 76वें जन्मदिन पर 53 यथार्थवादी कविताओं का संकलन और कवि की दूसरी काव्यकृति “उजली धूप पर तैरता यथार्थ” का मात्र 1 साल के अंतराल में ही पाठकों के सामने आना अपूर्व, सुखद संयोग ही है।
पुस्तक को संपादित करते सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं प्रख्यात समालोचक डॉ. अरुण मोहन भारवि ने लिखा है कि मृत्यु की अनिवार्यता और जीने की व्यवस्था के बीच आधुनिक साहित्य विधा का नाम कविता है जो ज़िंदगी जीने और ढोने के बीच की सशक्त कड़ी है।
यह संकलन कवि की नई ताज़ी तटकी कविताओं का यथार्थवादी संकलन है जिसमें कवि की अधिकांश कविताएँ कवि कबीर की तरह ही सामाजिक विसंगतियों के विरुद्ध जेहादी मूड में तल्ख प्रहार करती हैं। पाठकों को कवि का यह विद्रोही तेवर बरबस अपनी ओर खींच लेता है।
कवि की सघ: प्रकाशित काव्यकृति “अनुभूतियों के मोरपंख” में अनुभूतियों की सतरंगी इन्द्रधनुष छवि सहज ही पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती है– बिना लक्ष्य बोलोगे तो वाणी में तेज कहाँ से लाओगे? विचारधारा में उद्देश नहीं तो अंधकार में खो जाओगे।
धर्म के आडंबर के खिलाफ़ कवि बिना लागलपेट की सीधी बात कहने में विश्वास करता है–धर्म के नाम पर धर्म धरा पर, हम यह कैसा आडंबर फैला रहे हैं? जिंस माँ से जन्म लिया उसी का मंदिर प्रवेश बंद करा रहे हैं|
(नया सूरज)
कवि की अनुभूति का एक रंग यह भी दर्शनीय है जब वह अपने “अस्तित्व की आश” शीर्षक कविता में मनुष्य के स्वार्थी चरित्र को बेनकाब करते हुए कहता है– मदद का दामन दरक गया है, तुम्हें बचाने कोई नहीं आएगा, यदि भूले भटके किसी की, निगाह पड़ गई तो ठोकर मार कर, गमले का शेष बचा अस्तित्व तोड़ चला जाएगा।
कवि की कविताएँ कई स्थलों पर अपने मूल अनुभवों में आघातों और सूचनाओं के विस्फोटों की कविता बन गई है जो मृदुल दल वाले कोमल-किसले नहीं, बल्कि यहाँ विचार की खुरदरी अडिग चट्टानें हैं। संघर्षों का अंधड़, उपहास, व्यंग्य और राजनीति का नरक है।
खास तेवर में यह अपनी परिस्थितियों से लड़ते-जूझते आदमी की कविता है। सच कहा जाए तो यह नई कविता की परंपरा के सहज विस्तार और विकास की कविता है- जीवन में हर संघर्ष सफलता की सीढ़ी चढ़ता है, दृढ़ इच्छा शक्ति से उन्नति को राह दिखाता है, सहनशीलता व्यक्ति का सबसे बड़ा आभूषण कहलाता है, सहन करने वाला व्यक्ति महानता का इतिहास बनता है।
स्वर्ण अग्नि की तपन में निखर कर आता है, बीज जमीन में पहुँचकर वटवृक्ष बन जाता है,
शीला हथौड़ी-छेनी का दर्द सा मूर्ति बन जाती है, मूर्ति में आध्यात्मिकता की छवि बहुत दूर से आती है, यह जीवन के कड़वे सत्य है जो अजर-अमर कहलाते हैं, जो इन्हें जीवन में बसा लेते हैं, वह स्वर्ण से निखर जाते हैं।
कवि मुख्य रूप से मुक्तक कविताओं का प्रेरणा है। इनके काव्य संकलन की अधिकांश कविताएँ सीमित आकार की और अपने आप में पूर्ण है। कवि आम आदमी के व्यक्तित्व और अस्तित्व को अपनी अनुभूतियों के माध्यम से रोज़मर्रा की जानी-पहचानी प्रतीकों और माध्यम से व्यक्त करती है।
उसकी भाषा में खीझ-रीझ, अवसाद और आंतरिक संघर्षों की तसल्ली तो मिलती है किंतु चमत्कार या शास्त्रीयता का कोई दबाव नहीं मिलता। इसलिए कवि की कविताएँ पाठकों से सीधे जुड़ जाती है, तादालय स्थापित करती है और सबकी चहेती बन जाती है। एक अच्छी संग्रहणीय और शाश्वत काव्य संकलन की प्रस्तुति के लिए कविवर बालेश्वर दयाल जायसवाल को बधाई और शुभकामनाएं। ईश्वर कवि को सुदीर्घ, स्वस्थ जीवन दे, शतायु करें ताकि वह इसी तरह साहित्य और समाज की सेवा करते रहे। आदित्य वर्धनम राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय जायसवाल (सर्व.) युवा महासभा सम्पर्क सूत्र 9818389050