अजय पाण्डेय
जौनपुर। “हिंदी आलोचना के आधार स्तंभ आचार्य रामचंद्र शुक्ल आलोचना के लिए युग प्रवर्तक कार्य कर गये। उन्होंने हिंदी आलोचना की दशा और दिशा निर्धारित की।
उनके हाथों में पड़कर आलोचना फली और फूली।” उक्त उद्गार आचार्य रामचंद्र शुक्ल की 140वीं जयंती पर तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में आयोजित विद्यार्थी गोष्ठी में डाॅ. महेंद्र त्रिपाठी ने व्यक्त किया। उन्होंने आगे कहा कि हिंदी के सबसे बड़े कवि गोस्वामी तुलसीदास के सबसे बड़े आलोचक और हिंदी साहित्य के प्रथम अपराजेय इतिहासकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल का व्यक्तित्व एवं कृतित्व अप्रतिम है।
इसी क्रम में हिंदी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसा इतिहासकार, निबंधकार, आलोचक फिर से मिलना दुर्लभ। आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी आलोचना के प्रतिमान हैं। डॉ वंदना सिंह असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी ने कहा कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी निबंध को नया आयाम दिया। मन के भाव से प्रारंभ कर उन्होंने काव्यशास्त्रीय और व्यावहारिक आलोचना के सुंदर निबंध लिखें।
संगोष्ठी में एम.ए. की छात्राएं अंजली यादव, प्रियंका सोनकर, नीतू यादव, रितु, मानसी गुप्त, प्रीति सिंह, तनु सिंह, नेहा यादव, आंचल सिंह, प्रिया सिंह, रोहिणी सिंह, निधि यादव, ममता गौड़, मनीषा यादव, प्रिया सिंह, निशा यादव, रोशनी गुप्त आदि ने आचार्य रामचंद्र पर अपना विचार रखा। इस अवसर पर तमाम लोग उपस्थित रहे।