जाने कितने ब्रह्मराक्षस…?

सुना है कि…ब्रह्मराक्षस…!
होता है… असीम ज्ञान का भंडार…
नित्-नए शोध का विद्यार्थी…
यह भी सुना हूँ कि…
वह ढूँढ़ नहीं पाया…!
अपने पूरे जीवन काल में…
एक निश्छल योग्य शिष्य…
यह भी सुना है कि…
सर्वज्ञता का भ्रम लेकर…!
एकांतवास करने वाला… और…
आत्म केंद्रित मंथन से…
खुद के… मन-बुद्धि-विवेक को…
मथने वाला… बुद्धिजीवी…!
ब्रह्मराक्षस कहलाता है….
यह भी सुना है कि…!
ज्ञानार्जन और फिर ज्ञान दान…!
मनुष्य का सनातनी स्वभाव है… और
यही बुद्धिमान मानव की पहचान है…
यहीं पर गौरतलब हो जाता है मित्रो…
कि विकास के इस दौर में…
धीरे-धीरे ही सही… पर…!
बदली-बदली सी दिखती है…
यह सनातनी व्यवस्था… जहाँ मनुष्य
छुपाना चाहता है… अपने ज्ञान को…
चिढ़ाना चाहता है… अपने ज्ञान से…
पर साथ में… विरोधाभाष भी है…
कि वह बढ़ाना भी चाहता है…
अपना खुद का ज्ञान… और…
परिमार्जित करना चाहता है…
निरंतर अपने शोध को… और…
बड़े ही काईंएंपन के साथ…
दिखता है अपने शोध का…!
पेटेंट कराने को आतुर…
इस प्रक्रिया में… मौका मिलते ही…
किसी की टाँग खींचने से भी…!
कोई परहेज नहीं…
कुल मिलाकर ज्ञान सीखने… और…
शोध के लिए अधातुर… यही है…
आज के ज्ञानी मनुष्य की वृत्ति…
पर मित्रों… सच तो यही है कि…
इस पेटेंट के चक्कर में…!
सब ज्ञानी… पेशेंट हुए जा रहे हैं…
और…देखो तो सही… अकारण ही..
इस समाज में…
जाने कितने….?
ब्रह्मराक्षस बढ़ते जा रहे हैं…
इस समाज में…
जाने कितने…?
ब्रह्मराक्षस बढ़ते जा रहे हैं…
रचनाकार——जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ

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