डा. प्रदीप दूबे
सुइथाकला, जौनपुर। स्थानीय विकास खण्ड स्थित जहुरुद्वीनपुर गांव में शोभनाथ तिवारी के आवास पर चल रही सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के द्वितीय दिवस पर सरस कथा व्यास श्री वैष्णव श्री नारायण स्वामी वाचस्पति जी महाराज ने उपस्थित श्रोताओं को श्री शुकदेव जी की कथा का रसपान कराया।
कथा श्रवण कराते हुए स्वामी वाचस्पति महाराज ने कहा कि श्री शुकदेव महाभारत के प्रणेता वेदव्यास के पुत्र थे। भगवान श्रीकृष्ण और श्री राधिका जी के प्राकट्य काल में देवाधिदेव भगवान शिव पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे।
पार्वती जी कथा सुनते-सुनते निद्रा के वशीभूत हो गयीं और उनकी जगह पर शुक ने हुंकारी भरना प्रारम्भ कर दिया। जब भगवान शिव इसका पता चला तो वे क्रोधित होकर शुक का वध करने चल पड़े। शुक भागकर व्यास के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी के मुख में घुस गया। भगवान शंकर वापस लौट गये। यही शुक व्यास जी के अयोनिज पुत्र के रूप में प्रकट हुए।
12 वर्षों तक गर्भ में रहने के उपरांत जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा तभी ये गर्भ से बाहर निकले। जन्मते ही श्रीकृष्ण और अपने पिता-माता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिये जंगल की ओर प्रस्थान कर दिया। श्री शुकदेव श्रीकृष्ण लीला के अद्भुत आकर्षण में तत्वदृष्टा होने के साथ ही व्रह्मवेत्ता होकर अमर हो गये।
कथा समापन अवसर पर उपस्थित भक्तजन आरती लेकर प्रसाद ग्रहण किये। इस अवसर पर कथा संयोजक मण्डल के सदस्य राजनाथ तिवारी, ओम प्रकाश तिवारी, जय प्रकाश तिवारी, राजकरन, हरिशंकर, विजय शंकर, ओंकार, उदय शंकर, राजेश कुमार, कमलेश, बृजेश, देवेश, राहुल, प्रियांशु, शिवांश, श्रेयांश, प्रायू सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।