दो रोग…!

आज के दौर में
लाइलाज हो गए हैं…
दो रोग…!
खूब ढेर सारा पैसा कमाना… और…
जल्दी से “फेमस” हो जाना…
मित्रों… उम्र के किसी भी पड़ाव पर…
लग सकते हैं… ये दोनों ही रोग…
यह भी है एक अजीब सा संयोग,
दोनों रोग पालने को…!
आतुर रहते हैं सब लोग…
कोई संकोच भी नहीं करते ये लोग,
करने में अच्छा-बुरा करम…
बेमानी हो जाता है इनके लिए,
नियम-संयम और धरम-करम…
मित्रों… बुजुर्गों ने कहा है…!
रोग भय “क्रिएट” करता है….
ये दोनों रोग भी…!
विषय नहीं अपवाद का…
दोनों ही संचार करते हैं,
अज्ञात डर-भय, लोभ और…
अतिरेक प्रमाद का…
एक में जेल जाने का भय…
तो दूसरे में फेल हो जाने का…
इतना ही नहीं मित्रों…!
दोनों में ही रहता है…
समाज में जग-हँसाई का भय…
बावजूद इसके मित्रों…!
विस्तार ही ले रहे हैं,
ये दोनों ही संक्रामक रोग…
“साइड इफेक्ट” के रूप में…!
आक्रामक होते जा रहे हैं लोग…
कौन समझाए इनको… दोनों ही…
“इनडाइरेक्टली” हैं… एक भरम…
माहौल किए रहते हैं… हरदम गरम…
पर… बना देते हैं आपको बेहद बेशरम
धीरे-धीरे ही सही… लेकिन…!
कर देते हैं… आपका जीवन भसम…
अब एक आश्चर्य की बात प्यारे…!
जानते सभी हैं… इन रोगों के मरम…
पर… यहाँ कोई नहीं दिखता,
करते हुए एक दूजे पर रहम…
भारी ही दिखता है लोगों का अहम…
पाले रहते हैं लोग हरदम…!
खूब ढेर सारा “पैसा कमाने”… और…
जल्दी से “फ़ेमस” हो जाने का वहम
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ

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