Jaunpur: परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित कर लेना ही प्राणि मात्र के जीवन का लक्ष्य: स्वामी वाचस्पति महाराज

  • सुइथाकला के जहुरूद्दीनपुर में चल रही सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा

डा. प्रदीप दूबे
सुइथाकला, जौनपुर। स्थानीय विकास खण्ड स्थित जहुरुद्दीनपुर गांव में चल रही सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के छठवें दिवस पर भारी संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने कथा का रसपान किया।
श्रीमद्भागवत कथा व्यास श्री वैष्णव श्री नारायण स्वामी वाचस्पति जी महाराज ने उपस्थित भक्तजनों को भगवान श्री कृष्ण की महारासलीला तथा रूक्मणी विवाह की कथा का रसपान कराया। भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों की महा रासलीला के आध्यात्मिक तत्व का वर्णन करते हुए स्वामी वाचस्पति ने कहा कि भगवान से सम्बन्ध स्थापित कर लेना ही प्राणि मात्र का लक्ष्य होना चाहिए। श्रीकृष्ण रास लीला का मूल तत्व प्रेमाभक्ति द्वारा भगवान में लीन होना है।
उन्होंने बताया कि रास क्रीड़ा द्वारा भगवान गोपिकाओं के ह्रदय में प्रेम की उन्मुक्त पीर उत्पन्न करते हैं जिसके मध्य में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं है, वहां केवल वही आत्मा होती है जो परमात्मा से जुड़ती है। जीवात्मा का भगवान में योग ही महारास की अन्तिम परम अनुभूति है। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं रस के अवतार हैं। जिस दिव्य क्रीड़ा में एक ही रस अनेक रसों में प्रकट होता है, उस रस का रसास्वादन करना ही ‘रास’ है।
उसमें काम-भावनाओं की कोई स्थान नहीं है, ये प्रेम की पराकाष्ठा है। श्रीमद्भागवत कथा के क्रम में रूक्मणी विवाह का प्रसंग सुनकर उपस्थित श्रोता भाव—विभोर हो गये। कथा आरम्भ से पूर्व मुख्य यजमान ने विधि विधान से देव पूजन किया। समापन अवसर पर उपस्थित भक्तजन आरती लेकर प्रसाद ग्रहण किये।
श्रीमद्भागवत कथा संयोजक मण्डल में शोभनाथ तिवारी, राजनाथ तिवारी, ओम प्रकाश तिवारी, जय प्रकाश तिवारी, राजकरन, हरिशंकर, विजयशंकर, ओंकार, उदय शंकर, राजेश कुमार, कमलेश, बृजेश, देवेश, राहुल, प्रियांशु, शिवांश, श्रेयांश, प्रायू आदि सम्मिलित रहे।

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