घाटे के नाम पर कौड़ियों के मोल अरबों-खरबों की परिसम्पत्तियां बेचने में व्यस्त है प्रबन्धन
कर्मचारियों की सेवा शर्त प्रभावित होने, पदोन्नति एवं छंटनी की बात प्रबन्धन ने स्वीकार की
अजय पाण्डेय
जौनपुर। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश ने पावर कारपोरेशन प्रबन्धन पर झूठ के सहारे अरबों-खरबों रूपये की बिजली विभाग की परिसम्पत्तियां पहले से तय कुछ चुनिंदा निजी घरानों को बेचने में लगा हुआ है।
प्रबन्धन ने यह कहकर कि 42 जनपदों का निजीकरण होने के बाद शेष बचे पावर कारपोरेशन में पदों में वृद्धि की जायेगी, खुद स्वीकार कर लिया है कि निजीकरण से कर्मचारियों की पदावनति और छंटनी होने वाली है।
संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश के आह्वान पर राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश भर में समस्त जनपदों एवं परियोजना मुख्यालयों पर निजीकरण के विरोध में सभाएं की गयीं। सभाओं में कर्मचारियों ने चेतावनी दी कि निजीकरण की कोई भी एकतरफा कार्यवाही की गयी तो बिजली कर्मचारी लोकतांत्रिक ढंग से संघर्ष करने हेतु विवश होंगे।
संघर्ष समिति के पदाधिकारी राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, सुहैल आबिद, पी.के. दीक्षित, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आरवाई शुक्ला, छोटे लाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आरबी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो0 इलियास, श्रीचन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पीएस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेमनाथ राय एवं विशम्भर सिंह ने बताया कि वर्ष 2000 में विद्युत परिषद का विघटन होने के समय तक अभियन्ता प्रबन्धन था और विद्युत परिषद बनने के बाद 1959 से 2000 तक 41 वर्षों में मात्र 77 करोड़ रूपये का घाटा था जो विद्युत परिषद का विघटन होने के बाद आईएएस प्रबन्धन के रहते एक लाख दस हजार करोड़ रूपये केवल 24 वर्ष में पहुँच गया।
मजेदार बात यह है कि घाटे के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदारी प्रबन्धन की होती है किन्तु प्रबन्धन कर्मचारियों पर घाटा थोप कर अरबों-खरबों रूपये की सार्वजनिक सम्पत्ति पहले से तय कुछ निजी घरों को सौंपने जा रहा है। पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन द्वारा जारी किये गये घाटे के आँकड़े भ्रामक हैं जो पूरी तरह झूठ का पुलिन्दा हैं।
पावर कारपोरेशन प्रबन्धन के पीपीटी प्रेजेंटेशन में बिजली राजस्व बकाये की धनराशि 115825 करोड़ रूपये बतायी गयी है जिसमें दक्षिणांचल का 24947 करोड़ रूपये और पूर्वांचल का 40962 करोड़ रूपये सम्मिलित है। सवाल यह है कि यदि यह राजस्व वसूल लिया जाये तो पॉवर कारपोरेशन 5825 करोड़ के मुनाफे में है, फिर घाटे का झूठ फैलाकर निजीकरण करना किस साजिश का हिस्सा है।
वर्ष 2010 में जब टोरेण्ट पॉवर को आगरा का फ्रेंचाईजी दिया गया था तब आगरा में राजस्व वसूली का 2200 करोड़ रूपये बकाया था। आज 14 साल गुजर जाने के बाद भी टोरेण्ट कम्पनी ने इस बकाये की धनराशि का एक रूपये भी पॉवर कारपोरेशन को नहीं दिया है।
अब दक्षिणांचल और पूर्वांचल डिस्कॉम, जिन्हें बेच जा रहा है, उनका बकाया लगभग 66000 करोड़ रूपये है। निजीकरण के बाद यह 66000 करोड़ रूपये डूब जायेगा और निजी कम्पनियों की जेब में चला जायेगा। ऐसा लगता है कि पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन इस सांठ-गांठ का हिस्सा है।
निजीकरण के बाद शेष बचे पॉवर कारपोरेशन में नये पदों का सृजन किया जायेगा और न ही किसी की पदावनति होगी और न ही किसी की छंटनी होगी, यह कहकर पावर कारपोरेशन ने खुद स्वीकार कर लिया है कि निजीकरण के बाद पदावनति और छंटनी होने वाली है।
कर्मचारी प्रबन्धन की बात पर कैसे भरोसा करें जब 3 दिसम्बर 2022 को मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार अवनीश अवस्थी एवं ऊर्जा मंत्री अरविन्द शर्मा की उपस्थिति में हुए समझौते को प्रबन्धन ने मानने से इंकार कर दिया।
यह समझौता आज दो वर्ष बीत जाने के बाद भी लागू नहीं किया गया है। 19 मार्च 2023 को मा0 ऊर्जा मंत्री अरविन्द शर्मा द्वारा हड़ताल के कारण की गयी समस्त उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियां वापस लेने के निर्देश का पावर कारपोरेशन प्रबन्धन ने आज तक पालन नहीं किया है।
बहुत कम वेतन पाने वाले हजारों संविदा-निविदा कर्मचारी निकाले जाने के कारण भुखमरी के कगार पद आ गये हैं और नियमित कर्मचारियों पर भी उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियाँ चल रही है। ऐसे में कर्मचारी पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन के झूठ से गुमराह होने वाले नहीं है। कर्मचारियों ने निजीकरण के विरूद्ध निर्णायक संघर्ष का संकल्प लिया।