हृदय हमारा सर्वश्रेष्ठ तीर्थ होता है

आज ज़माना वहाँ पहुँचा है जहाँ पर
आगे और पीछे सतर्क रहना होता है,
यदि शाबाशी पीठ में दी जाती है तो
ख़ंजर भी पीठ में ही मारा जाता है।
कौन किसे यह समझाये ख़ुशियाँ
बाँटने से कम नही होतीं, बढ़ती हैं,
जिस दीपक से सैकड़ों दीप जलें,
पर उसकी रोशनी कम नहीं होती।
हमको जितना ऊँचे उड़ना होता है,
उतना ही हल्का हो जाना पड़ता है,
उड़ना भी एक सफ़र है, जितना कम
सामान पास हो उतना अच्छा होता है।
उड़ते हुये हमसफ़र साथ हो,
चेहरे पर हंसी झलकती हो,
उपवन में खिले फूल गुलाब के हों,
धरती की घास में ओस की बूँदे हों।
एक तरफ आशा का संचार हो,
जो किसी से सन्तुष्ट नही होती,
दूसरी तरफ सन्तुष्टि है जो किसी से
कोई भी आशा उम्मीद नहीं रखती।
इंसान जगत में हर घर पैदा होते हैं,
पर इंसानियत कहाँ पैदा होती है,
इंसानियत साथ ही पैदा हो जाये,
सारे जग की समस्या ही मिट जाये।
हृदय हमारा सर्वश्रेष्ठ तीर्थ होता है,
यह जितना पाप रहित, निर्मल होगा,
आदित्य सभी तीर्थ खुद ही चलकर
आएँगे, यही अलौकिक पुण्य होगा।
कर्नल आदिशंकर मिश्र ‘आदित्य’
जनपद—लखनऊ

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