हर साल 2.17 लाख महिलाएं ‘ब्रेस्ट कैंसर’ की चपेट में, साल में एक बार ‘स्क्रीनिंग मैमोग्राम’ जरुरी

भारत में महिलाओं में कैंसर के मामलों में 27 प्रतिशत मामले स्तन कैंसर के हैं। इस तरह की परेशानी 30 वर्ष की उम्र के शुरुआती वर्षों में होती है, जो आगे चलकर 50 से 64 वर्ष की उम्र में भी हो सकती है। स्तन कैंसर के कुछ लक्षणों में स्तन या बगल में गांठ बन जाना, स्तन के निप्पल से खून आना, स्तन की त्वचा पर नारंगी धब्बे पड़ना, स्तन में दर्द होना, गले या बगल में लिम्फ नोड्स के कारण सूजन होना आदि प्रमुख हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 28 में से किसी एक महिला को जीवकाल में कभी न कभी स्तन कैंसर होने का अंदेशा रहता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मुताबिक, भारतीय महिलाओं में छोटी उम्र में ही स्तन कैंसर होने लगा है। भारत में हर साल 2.17 लाख महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होता है। यह हर साल दो प्रतिशत की रेट से बढ़ रहा है। 2030 तक यह आंकड़ा 2.65 लाख के पार हो जाएगा। जागरुकता की कमी और रोग की पहचान में देरी के चलते उपचार में कठिनाई भी आती है। स्तन कैंसर में इस रोग के ऊतक या टिश्यू स्तन के अंदर विकसित होते हैं। इस रोग होने के पीछे जो कारक हैं, उनमें प्रमुख हैं जीन की बनावट, पर्यावरण और दोषपूर्ण जीवनशैली। बचाव के लिए जरूरी है कि 30 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं की स्क्रीनिंग आवश्यक रूप से की जाए। साथ ही जीवनशैली में भी कुछ बदलाव किए जाएं तो इस रोग की आशंका कम की जा सकती है।

सुरेश गांधी
बदलती जीवन शैली, बदलते खान-पान और खुद के शरीर पर ध्यान नही दिए जाने के कारण लगातार देशभर में कैंसर का खतरा बढ़ता जा रहा है। इसमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है। ब्रेस्ट कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज समय पर ना हो, तो यह जानलेवा साबित हो सकती है। भारत में हर साल 2.17 लाख महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होता है। यह हर साल दो प्रतिशत की रेट से बढ़ रहा है। 2030 तक यह आंकड़ा 2.65 लाख के पार हो जाएगा। यह समस्या गांवो में ज्यादा दिखाई दे रही है। गांव की महिलाएं शर्म के कारण अपनी समस्या सबके साथ शेयर नहीं करती है, इस वजह से डॉक्टर के पास नही जा पाती हैं। इससे उनके ठीक होने का चांस भी काफी कम हो जाता है। इसलिए हमारी जिम्मेदारी बनती है कि गांव की महिलाओं को किसी तरह से भी जागरूक करें। खानपान की गलत आदतें, बिगड़ा हुआ लाइफस्टाइल, धूम्रपान, शराब पीना, हाई फैट डाइट, देर से सोना, देर से उठना और बढ़ता मोटापा इस कैंसर के होने का एक बड़ा कारण है। ताजे फलों और सब्जियों के बजाय कैलोरी युक्त फास्ट फूड का विकल्प चुनने की बढ़ती प्रवृत्ति भी चिंता का कारण है। ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं में होने वाली मौत का मुख्य कारण है। लक्षणों की पहचान न हो पाने की वजह से ज्यादातर महिलाओं को एडवांस स्टेज में इसका पता नहीं चल पाता है। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में ब्रेस्ट कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं और चिंता का कारण हैं।
एक स्टडी के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत में ब्रेस्ट कैंसर का आंकड़ा 2 मिलियन को पार कर जाएगा। एक अन्य रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में 40 से कम उम्र की 25 फीसदी महिलाएं स्तन कैंसर की चपेट में है। भारत में 60 फीसद से ज्यादा स्तन कैंसर के मरीज एडवांस स्टेज में हैं, पश्चिमी देशों के मुकाबले में स्तन कैंसर से संबंधित मृत्यु की दर में इजाफा हुआ है। डीएनए में अचानक से होने वाले परिवर्तनों के कारण सामान्य स्तन कोशिकाओं में कैंसर हो जाता है। यद्यपि इनमें से कुछ परिवर्तन तो माता-पिता से मिलते हैं लेकिन बाकी ऐसे परिवर्तन जीवन में खुद ही प्राप्त होते हैं। प्रोटोओंकोजीन्स की मदद से ये कोशिकाएं बढ़ती जाती हैं। जब इन कोशिकाओं में म्यूटेशन या उत्परिवर्तन होता है, तब ये कैंसर कोशिकाएं बेरोक-टोक बढ़ती जाती हैं। ऐसे उत्परिवर्तन को ओंकोजीन के रूप में जाना जाता है। एक अनियंत्रित कोशिका वृद्धि कैंसर का कारण बन सकती है। बीआरसीए1 और बीआरसीए2 जीन में उत्परिवर्तन होते हैं। माता-पिता से उत्परिवर्तित जीन से स्तन कैंसर का जोखिम अधिक होता है। उच्च जोखिम वाली महिलाओं को हर साल एमआरआई और मैमोग्राम कराना चाहिए। एस्ट्रोजेन स्तन ग्रंथियों के ऊतकों के विभाजन को तीव्र करता है. किसी महिला में यदि लंबे समय तक एस्ट्रोजेन अधिक रहता है, तो स्तन कैंसर का खतरा बढ़ा रहता है. यदि 11 वर्ष की आयु या उससे पहले ही मासिक धर्म शुरू हो जाए या 55 वर्ष या उससे अधिक उम्र में रजोनिवृत्ति हो तो माना जाता है कि एस्ट्रोजेन का एक्सपोजजर अधिक है। महिलाओं को 45 वर्ष से 54 वर्ष की उम्र तक हर साल एक बार स्क्रीनिंग मैमोग्राम करा लेना चाहिए। 55 वर्ष या अधिक उम्र की महिलाओं को सालाना स्क्रीनिंग करानी चाहिए। विशेषज्ञाों का कहना है कि बदलते परिवेश में खुद महिलाएं अपने स्तर से घर पर ही स्क्रीनिंग कर सकती हैं। आंकड़ों के मुुताबिक आठ में से एक महिला को कैंसर की शिकायत है। एक साल में दो लाख के करीब महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा सामने आ रहा है। यह बेहद ही चौंकाने वाला है। विशेष रूप से यह खतरा ग्रामीण परिवेश की महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलता है।

हर वर्ष 1 लाख 78 हजार नए केस

नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के तहत 2022 में देश में 14,61,427 कैंसर रोगी है। यूपी में सर्वाधिक 2,10,958 रोगी है, जबकि राजस्थान में 74,725 है। मतलब साफ है यूपी में कैंसर तेजी से अपने पैर पसार रहा है। 2023 में लगभग 2.17 लाख नए कैंसर मामलों के साथ, उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में वर्ष में सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई। जबकि 2021 में इस राज्य में कैंसर के नए मामलों की संख्या करीब 2 लाख रही थी। महाराष्ट्र 1.24 लाख दूसरे, पश्चिम बंगाल तीसरे व बिहार चौथे नंबर पर है। यह आंकड़ा इस बीमारी की गंभीरता और घातकता को दर्शाने के लिए पर्याप्त है। केवल महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर केंद्र एवं होमी भाभा कैंसर अस्पताल, वाराणसी में अब तक 1,22,896 नए कैंसर मरीजों का पंजीकरण, जबकि 20,197 मरीजों की सर्जरी हो चुकी है। अगर 2023 क बात करें तो जनवरी से लेकर अक्टूबर तक कुल 22,522 नए मरीजों का पंजीकरण हो चुका है। केरल (135.3), मिजोरम (121.7), हरियाणा (103.4), दिल्ली (102.9), कर्नाटक (101.6), गोवा (97.0), हिमाचल प्रदेश (91.6), उत्तराखंड (91.0), असम (90.2), पंजाब (85.5) में मरीज पीडित है। इन राज्यों में पिछले कुछ दशकों में कैंसर के सबसे ज़्यादा मामले सामने आए हैं।

2040 तक 2.84 करोड़ मरीज हो सकते हैं

अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुमानों के अनुसार, जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के कारण 2040 में दुनिया भर में कैंसर रोगियों की संख्या 2.84 करोड़ होने की आशंका है, जो 2020 की तुलना में 47 प्रतिशत अधिक होगी। यह संख्या वैश्वीकरण और बढ़ती अर्थव्यवस्था से जुड़े जोखिम कारकों में वृद्धि से बढ़ सकती है। वर्ष 2020 में दुनिया भर में अनुमानित तौर पर कैंसर के 1.93 करोड़ नए मामले आए और करीब एक करोड़ लोगों की कैंसर से मौतें हुईं। भारत में साल 2018 में ब्रेस्ट कैंसर से 87 हजार महिलाओं की मौत हुई थी। मतलब साफ है यहां हर साल कैंसर के 10 से 15 केस सामने आते हैं. जबकि पूरी दुनिया में 1.8 करोड़ लोग हर साल कैंसर की बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा मामले मुंह के कैंसर, फेंफड़ों के कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर के हैं। कुछ तरह के कैंसर बढ़ने की प्रमुख वजहों में ह्यूमन पेपिलोमावायरस इंफेक्शन, हेपेटाइटिस बी और सी जैसी संक्रमण वाली बीमारियां शामिल हैं। ये लिवर, ब्रेस्ट और सर्वाइकल और मुंह के कैंसरों की वजह बनती हैं। हेपेटाइटिस बी और सी लिवर कैंसर का सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है. ओरल और सर्वाइकल कैंसर का सबसे बड़ा कारण है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से दिए आंकड़े बताते हैं कि 2020 में दिल्ली में 14,057 कैंसर से संबंधित मौतें हुईं, जबकि 2021 में 14,494 मौतें और 2022 में 14,917 मौतें हो चुकी हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की नैशनल कैंसर रजिस्ट्री के आंकड़ें बताते हैं कि देश में 2023 में कैंसर के मामले 15 लाख तक पहुंच गए हैं। इसके अलावा ऐसे हजारों केस भी होंगे, जिनका आंकड़ा नहीं मिल पाता होगा। जम्मू और कश्मीर में कैंसर के मामलों में चिंताजनक वृद्धि देखी जा रही है। यहां हर साल 12000 से ज्यादा नए मामले सामने आते हैं। पिछले पांच सालों में जम्मू-कश्मीर में कैंसर के 60000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं, यानी हर साल औसतन 12,000 से ज्यादा मामले।

किन कारणों से हो सकता है कैंसर?

प्रदूषित हवा भी कैंसर का कारण बन सकती है। मेट्रो शहरों में प्रदूषण का लगातार बढ़ता स्तर प्रत्येक निवासी को खतरे में डालने की क्षमता रखता है। धूल व बिल्डिंग मैटेरियल से उड़ने वाले सूक्ष्म कण भी फेफड़ों के लिए खतरनाक होते हैं। धूम्रपान न करने वाले भी प्रदूषित हवा के माध्यम से धूम्रपान के हानिकारक प्रभावों के संपर्क में आते हैं। बाथरूम क्लीनर, उर्वरक या कीटनाशकों जैसे रसायनों के अधिक संपर्क में आने से लोगों को कैंसर का खतरा हो सकता है।

कैंसर को कैसे रोका जाए?

कैंसर को रोका जा सकता है लेकिन हम सचेत नहीं हैं। हम नियमित रूप से व्यायाम नहीं करते, रेस्तरां से हाई कैलोरी वाला भोजन खाते हैं। इन रेस्तरां में खराब तेल से खाना पकाया जाता है और हाईजीन का भी ध्यान नहीं रखा जाता। शारीरिक पहलुओं के अलावा, पुराना मानसिक तनाव भी कैंसर का कारण बन सकता है। इसलिए हमें यथासंभव संघर्षों और झगड़ों से बचना चाहिए और अपने मन को तनाव मुक्त रखने की कोशिश करनी चाहिए। हालांकि कैंसर एक जानलेवा बीमारी है। अगर प्राथमिक चरणों में इसका पता चल जाए तो यह काफी हद तक ठीक हो सकता है।

ब्रेस्ट कैंसर की पहचान

आमतौर पर ब्रेस्ट कैंसर की पहचान करना मुश्किल होता है। समस्या को देखते हुए भी ज्यादातर महिलाएं इसे नजरअंदाज कर देती हैं लेकिन एक महिला के ब्रेस्ट और निप्पल में होने वाले बदलावों से ब्रेस्ट कैंसर की पहचान की जा सकती है। ब्रेस्ट पर अगर कोई गांठ है या फिर निप्पल चपटे और मुड़े हुए दिख रहे हैं, तो बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। आमतौर पर ब्रेस्ट पर होने वाली गांठ में दर्द नहीं होता। फिर भी किसी मरीज को ब्रेस्ट एरिया या फिर निप्पल में दर्द महसूस हो सकता है। फिलहाल ब्रेस्ट कैंसर के लिए कोई वैक्सीनेशन उपलब्ध नहीं है लेकिन रिस्क को कम करने के लिए लाइफस्टाइल में सुधार किया जा सकता है। ब्रेस्ट फीडिंग कराने से ब्रेस्ट कैंसर के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है। उम्र से पहले पीरियड आना और मेनोपॉज का देर से होना ब्रेस्ट कैंसर के रिस्क को बढ़ा सकता है।

ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण

  • ब्रेस्ट के आकार में बदलाव
  • ब्रेस्ट पर मटर के दाने जितनी छोटी गांठ
  • ब्रेस्ट या इसके आसपास के हिस्से में गांठ या फिर मोटापा महसूस होना
  • ब्रेस्ट या निप्पल की त्वचा के रंग में बदलाव
  • निप्पल से खून के धब्बे आना

ब्रेस्ट कैंसर के कारण

  • उम्रः 55 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं में इसकी संभावना बनी रहती है।
  • फैमिली हिस्ट्रीः अगर महिला की फैमिली में माता-पिता, भाई बहन या बच्चे को ब्रेस्ट कैंसर रहा है, तो उसे भी यह रोग होने की संभावना है।
  • हार्मोनल बदलाव: कुछ महिलाओं में हार्मोनल बदलाव के चलते भी ब्रेस्ट कैंसर की संभावना बन जाती है। जिन महिलाओं का मेनोपॉज देर से हुआ है, उन्हें ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क बना रहता है।
  • धूम्रपान और शराब का सेवन: जरूरत से ज्यादा शराब का सेवन और धूम्रपान करने वाली महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले ज्यादा देखे जाते हैं। ऐसी महिलाओं के लिए अल्कोहल की जरा सी भी मात्रा जहर बराबर है।
  • मोटापाः मेनोपॉज के बाद मोटापे की शिकार महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए डॉक्टर मेनोपॉज के बाद वजन कंट्रोल करने की सलाह देते हैं।

ब्रेस्ट कैंसर के चरण

  • स्टेज 0ः डक्टल कार्सिनोमा इन सीटू ब्रेस्ट कैंसर की प्राइमरी स्टेज है। इसमें कैंसर के टिश्यू ब्रेस्ट मिल्क डक्ट में ही पाए जाते हैं। लेकिन ये ब्रेस्ट के आसपास के अन्य हिस्सों में फैल नहीं पाते। इसके लक्षणों को आसानी से नहीं पहचाना जा सकता। इसके निदान के लिए मैमोग्राम या बायोप्सी की जरूरत पड़ती है।
  • स्टेज-1ः इस स्टेज में कैंसर का आकार 1 इंच से भी छोटा होता है। ब्रेस्ट में कोई गांठ नहीं दिखती, लेकिन कैंसर सेल्स आसपास के लिम्फ नोड्स में पाए जाते हैं।
  • स्टेज-2ः इस स्टेज में कैंसर का साइज बढ़कर 0.82 -2 इंच के बीच होता है। कैंसर सेल्स आसपास के लिम्फ नोड्स में फैल सकते हैं।
  • स्टेज-3ः इसमें कैंसर का साइज कैसा भी हो सकता है। कैंसर ब्रेस्ट के आसपास के टिश्यू में फैलने लगता है। यह लिंफ नोडस जैसे अंडरआर्म्स, ठोड़ी के नीचे या फिर ब्रेस्ट के आसपास एक या दोनों तरफ फैल चुका है।
  • स्टेज 4ः यह ब्रेस्ट कैंसर की लास्ट और एडवांस स्टेज है, जिसे मेटास्टेटिस ब्रेस्ट कैंसर कहते हैं। इस स्टेज में कैंसर शरीर के हर अंग जैसे हड्डी, लिवर, फेफड़े और ब्रेन में फैल चुका होता है।

ब्रेस्ट कैंसर के लिए टेस्ट

  • मैमोग्राम: मैमोग्राम एक तरह का एक्स रे इमेजिंग टेस्ट है, जो ब्रेस्ट की इमेज लेकर कैंसर सेल्स के होने की पहचान करती है।
  • अल्ट्रासाउंड: यह भी एक इमेज टेक्निक है। इसमें ब्रेस्ट के अंदर की तस्वीर लेने के लिए हाई फ्रीक्वेंसी साउंड वेव्स का उपयोग किया जाता है।
  • एमआरआई: एमआरआई की मदद से ब्रेस्ट की 3डी इमेज ली जाती है। इस स्क्रीनिंग की सलाह उन महिलाओं को दी जाती है, जो पहले कभी ब्रेस्ट कैंसर का सामना कर चुकी हैं।

ब्रेस्ट कैंसर का इलाज

ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। इसमें जरूरत के हिसाब से तीन तरह के सर्जरी की जाती है, जिसे लंपेक्टॉमी, मास्टेक्टॉमी और सर्जिकल बायोप्सी कहते हैं। इसके अलावा कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, हार्मोनल थेरेपी, टारगेटेड थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी, एग्जोनिशन थेरेपी, पेलियेटिव केयर के जरिए भी ब्रेस्ट कैंसर को ठीक करने की कोशिश की जाती है।

पिछले तीन वर्षों के आंकड़े

आंकड़ों को देखें तो 2021 में कैंसर के 1426447 मामले नैशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम में दर्ज किए गए। 2022 में यह संख्या बढ़कर 1461427 हो गई और 2023 में 1496972 केस सामने आए। हर 9 में से से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कैंसर होने की संभावना है। पुरुषों में फेफड़े और महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के काफी मामले सामने आ रहे हैं। 14 वर्ष तक की आयु में लिम्फोइड ल्यूकेमिया का खतरा बढ़ा है।

2025 तक कैंसर केस में 10 फीसदी के इजाफे का अनुमान

2020 की तुलना में 2025 में कैंसर के मामलों में 10 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी का अनुमान है। आईसीएमआर का कहना है कि कैंसर का पता लगाने के लिए अब बेहतर डायग्नोस्टिक तकनीक है, इन तकनीकों की आम लोगों तक पहुंच और उपलब्धता है, जिसके चलते कैंसर का जल्दी भी पता लग जाता है। एडवांस स्टेज में जाने से पहले स्क्रीनिंग के जरिए कैंसर का पता लगने से इलाज होना संभव हो जाता है। ऐसे में स्क्रीनिंग पर ध्यान देने की जरूरत है और लक्षणों के बारे में जानकारी होना जरूरी है। हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी भी खतरा बन रहे हैं। हेपेटाइटिस बी और सी वायरस से लंबे समय तक संक्रमित रहने पर लीवर कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। संक्रमित रहने पर पित्त नली के कैंसर का खतरा हो जाता है।

ब्रेस्ट कैंसर से अछूते नहीं हैं पुरुष

सिर्फ महिलाओं को ही ब्रेस्ट कैंसर नहीं होता है, बल्कि पुरुष भी इसके शिकार हो सकते हैं। सीडीसी बताता है कि यूएस के ब्रेस्ट कैंसर के हर 100 मामलों में से 1 मामला पुरुषों में मिलता है। इसलिए, पुरुष इस घातक बीमारी से एकदम अछूते नहीं हैं। इंफ्लेमेटरी ब्रेस्ट कैंसर (आईबीसी) कैंसर का एक दुर्लभ और तेजी से बढ़ने वाला रूप है, जो त्वचा पर अपने लक्षण दिखा सकता है। क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक ज्यादातर ब्रेस्ट कैंसर के विपरीत, आईबीसी आमतौर पर ब्रेस्ट टिश्यूज में गांठ का कारण नहीं बनता है। इसके बजाय, यह दाने के रूप में प्रकट होता है, जिससे प्रभावित स्तन पर संतरे के छिलके के समान त्वचा की बनावट बन जाती है। आईबीसी के कारण प्रभावित स्तन पर दर्द, लालिमा, सूजन और गड्ढे पड़ जाते हैं।
                लेखक- सुरेश गांधी

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