बाबा साहब के लिये तिरस्कार और सत्ता की चुप्पी: संविधान के प्रति यह घृणा क्या संकेत देती है?

आनन्द देव यादव
डा. भीमराव अंबेडकर केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं। वे समानता, न्याय और बंधुत्व के प्रतीक हैं। जिस संविधान ने इस देश को लोकतंत्र का आधार दिया, वह बाबा साहब की सबसे बड़ी देन है। ऐसे में जब गृह मंत्री अमित शाह उनके लिए अपमानजनक भाषा का उपयोग करते हैं तो यह केवल एक व्यक्ति पर प्रहार नहीं है, बल्कि उनके विचारों, संविधान और समता के सिद्धांतों पर चोट है।
अमित शाह ने 6 बार “अंबेडकर-अंबेडकर” कहकर जिस तरह से उनकी उपलब्धियों को हास्यास्पद बनाने की कोशिश की, वह न केवल असंवेदनशील है, बल्कि उनके प्रति गहरी नफरत को भी उजागर करता है। यह बयान उनके दिल की उस सच्चाई को दिखाता है जो अक्सर सत्ता के मुखौटे के पीछे छुपा रहता है। प्रधानमंत्री मोदी की इस बयान पर चुप्पी उनकी सहमति को भी दर्शाती है।
  • संविधान और सत्ता की सच्चाई

यह एक विडम्बना है कि जिस संविधान ने दलितों और पिछड़ों को समान अधिकार दिए, उसी के तहत सत्ता में आए लोग अब बाबा साहब की विरासत पर हमला कर रहे हैं। अमित शाह को शायद यह याद नहीं कि अगर अंबेडकर ने संविधान में वंचित तबकों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अधिकार नहीं दिलाया होता तो आज भाजपा जैसी पार्टी इन तबकों का समर्थन कभी हासिल नहीं कर पाती। गृह मंत्री का यह बयान न केवल संविधान के प्रति असम्मान को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि सत्ता में बैठे लोग लोकतांत्रिक मूल्यों और समानता के विचार को किस नजर से देखते हैं।

  • भाजपा की खामोशी: सहमति या रणनीति?

गृह मंत्री के बयान पर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के अन्य नेताओं की चुप्पी बताती है कि वे या इस घृणा से सहमत हैं या इसे अपनी राजनीति के लिए उपयोगी मानते हैं। उनकी यह चुप्पी बाबा साहब के प्रति तिरस्कार को वैधता प्रदान करती है। सोशल मीडिया पर “तड़ीपार” का ट्रेंड करना यह भी दिखाता है कि जनता ने अमित शाह के इस बयान को किस तरह से लिया है लेकिन सवाल यह है कि रामदास अठावले, चिराग पासवान और अन्य दलित या पिछड़े वर्गों के नेताओं ने इस पर प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी? क्या वे सत्ता के साथ अपने समीकरण को बिगाड़ने से डरते हैं?
  • घृणा का एजेंडा और लोकतंत्र पर खतरा

बाबा साहब अंबेडकर केवल दलितों के नेता नहीं थे। वे भारतीय लोकतंत्र के शिल्पकार थे। अगर उनके प्रति घृणा फैलाई जा रही है तो यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों—समानता, न्याय और बंधुत्व—पर सीधा हमला है। अमित शाह का बयान केवल एक व्यक्ति की सोच नहीं, बल्कि एक व्यापक एजेंडे का हिस्सा लगता है। यह एजेंडा संविधान से नफरत, लोकतंत्र से नफरत और उन मूल्यों से नफरत करता है जो इस देश को जोड़कर रखते हैं।
  • संविधान के प्रति हमारी जिम्मेदारी

यह समय है कि हम संविधान को केवल किताबों में बंद करने के बजाय उसे जीने का प्रयास करें। बाबा साहब के प्रति असम्मान केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, यह उन करोड़ों वंचितों पर हमला है जिनके जीवन में उन्होंने आशा की किरण जगाई।
प्रधानमंत्री और भाजपा को इस बयान पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। अगर वे चुप रहते हैं तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि उनकी चुप्पी इस नफरत को समर्थन देती है। गृह मंत्री अमित शाह को यह समझना चाहिए कि भगवान का नाम लेने से स्वर्ग मिलता है या नहीं, यह अलग बहस है लेकिन लोकतंत्र का सम्मान करने से देश मजबूत जरूर होता है। अगर उन्हें लोकतंत्र और संविधान में यकीन नहीं है तो बेहतर होगा कि वे सत्ता छोड़कर किसी पूजा स्थल पर भगवान का नाम लेने में ही अपना समय लगाएं। डा. अंबेडकर ने इस देश को एक विचार दिया था। इस विचार पर चोट करने वालों को यह याद रखना चाहिए कि विचार मरा नहीं करते। उनका संघर्ष और उनका सपना आज भी करोड़ों लोगों के दिलों में जिंदा है।

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