अमित त्रिवेदी
हरदोई। प्राचीनतम साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था श्री सरस्वती सदन के तत्वावधान में मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन सदन सभागार में जनपद की वरिष्ठ कवयित्री सीमा गुप्ता ‘असीम’ की अध्यक्षता में संपन्न हुई। उपस्थित कवियों ने विभिन्न से ओत-प्रोत रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को मंत्र—मुग्ध कर दिया।
इसके पहले कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण, पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। सदन उपाध्यक्ष श्रवण मिश्र राही ने आगत रचनाकारों का स्वागत किया। इसके पश्चात वरिष्ठ कवि राजकुमार सिंह ‘प्रखर’ ने वाणी वंदना के साथ ही देशप्रेम की बात करते हुए कहा कि हीरा-मोती सी धरती पर, क्या कुर्बान करूं।
मेरे देश की धरती बोल, तेरे मैं क्या-क्या नाम धरूं। रस परिवर्तन करते हुए युवा कवि कृतार्थ पाठक ने श्रृंगारिक रचना पढ़ते हुए कहा- यूं नहीं मन हारते हैं, ये परीक्षा की घड़ी है। दीप-सा जलना पड़ेगा, द्वार पर रजनी खड़ी है। इसी क्रम में सुकवि उदयराज सिंह उदय ने कहा कि मदमस्त घटाओं बिन अभिसार अधूरा है। प्रेमी के बिना तन पे, श्रृंगार अधूरा है।
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहीं वरिष्ठ कवयित्री सीमा गुप्ता ‘असीम’ ने अपनी बात कुछ इस तरह कही- दण्ड देकर साम गाकर, भय भरो अब हर उरग में। सांझ गहरी हो रही है, अब जला दो दीप मग में। ओज के सशक्त हस्ताक्षर आदर्श द्विवेदी प्रशस्त ने कहा कि आंख उठी जब वंदेमातरम् पर टकराना सीखा है/कुरुक्षेत्र की समर अग्नि में, धनुष उठाना सीखा है।
कवि सुधीर अवस्थी परदेशी ने कहा- भाग रही बिटिया देखो, प्रेम प्यार के नाम पर/ऐ समाज वालों क्या ग़लती, मुझको तू बदनाम न कर। युवा कवि रुद्राक्ष श्रीवास्तव ने मन की पीड़ा की बात करते हुए कहा- तन की चोट तो सबको नजर आए/मन के घाव कोई कैसे दिखाये।
गोष्ठी का संचालन कार्यसमिति सदस्य कुलदीप द्विवेदी ने किया। अन्त में सदन के मंत्री मनीष मिश्र ने आभार प्रदर्शन किया। इस अवसर पर प्रो. अखिलेश वाजपेयी, अभिषेक अग्निहोत्री, राजीव दुबे, अर्नव पाल आदि उपस्थित रहे।