उद्यानिकी फसलों में सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियां करेंगी जल, धन व समय का संचयन

  • सूक्ष्म एवं संयमित सिंचाई से होगी उत्पादन में वृद्धि

विशाल रस्तोगी
सीतापुर। कृषि विज्ञान केन्द्र-2 कटिया, सीतापुर में उत्तर प्रदेश सूक्ष्म सिंचाई परियोजना (यूपीएमआईपी) के उप घटक पर ड्राप मोर क्रॉप (माइक्रोइर्रीगेशन) अन्तर्गत उद्यान विभाग सीतापुर के सहयोग से एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए जिला उद्यान अधिकारी सुश्री राजश्री ने योजना के उदेश्यों पर जानकारी देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सूक्ष्म सिंचाई का महत्व बढ़ गया है। यूपीएमआईपी के माध्यम से, किसानों को नई और प्रौद्योगिकी पूर्ण सिंचाई उपकरणों की पहुंच प्रदान की जाती है जिससे कि उन्हें अधिक जल संरक्षण और खेती की व्यवस्था को सुदृढ़ करने में सहायता मिल सके।
उन्होंने कहा कि योजना का लाभ सभी वर्ग के कृषकों के लिए अनुमन्य है, ऐसे लाभार्थियों/संस्थाओं को भी योजना का लाभ मिल सकता है जो संविदा खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) अथवा न्यूनतम 7 वर्ष के लिए लीज एग्रीमेंट की भूमि पर बागवानी/खेती करते हैं। अतः जरुरी दस्तावेज के साथ प्रथम आवक प्रथम पावक के सिद्धांत पर योजना का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. दया एस. श्रीवास्तव नें किसानों को कृषि में सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियों को अपनाने हेतु प्रेरित करते हुए कहा कि जल है तो कल है हमें कृषि में पानी के महत्व को समझना होगा। उद्यानिकी फसलों के लिए सूक्ष्म सिंचाई तकनीक अत्यंत प्रभावी व लाभदायक है।
सरकार इस पर किसानों को अत्यधिक सहायता भी प्रदान कर रही है। प्रशिक्षण प्रभारी एवं कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा वैज्ञानिक सचिन प्रताप तोमर कहा कि सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियाँ जल का संयमपूर्वक उपयोग करना सिखाती हैं जिससे अमूल्य जल संसाधन का संरक्षण भी होता है और इसके द्वारा पानी की वास्तविक आवश्यकता को निर्धारित किया जा सकता है।
पंजीकरण हेतु आवश्यक दस्तावेज पर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रसार वैज्ञानिक श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि किसान के पहचान हेतु आधार कार्ड, भूमि की पहचान हेतु खतौनी एवं अनुदान की धनराशि के अन्तरण हेतु बैंक पासबुक के प्रथम पृष्ठ की छायाप्रति अनिवार्य है।
केन्द्र के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ. आनन्द सिंह ने कहा कि कृषि में जल की बचत का उपयोग कर पशुपालन कार्य में उपयोग किया जा सकता है गृह वैज्ञानिक डॉ. रीमा ने महिलाओं को सूक्ष्म सिंचाई पद्धति पर अधिकाधिक जागरूक करने हेतु प्रेरित किया। शस्य वैज्ञानिक डॉ. शिशिर कांत सिंह ने टपक सिंचाई एवं फव्वारा सिंचाई से फसलों पर होने वाले लाभ के बारे में जागरूक किया।
उन्होंने यह भी बताया कि ड्रोन तकनीक से खेती में पारंरिक तौर पर एक एकड़ खेत में स्प्रे करने में 5 से 6 घंटे का वक्त लगता है, जबकि ड्रोन से इतने ही क्षेत्र में 7 मिनट के अंदर ही यह काम हो जाएगा जबकि मैनुअल तरीके से एक एकड़ में स्प्रे करने पर 150 लीटर पानी लगेगा। वहीं ड्रोन से सिर्फ 10 लीटर में काम हो जाएगा।
प्राकृतिक खेती में सूक्ष्म सिचाई पद्धतियों अथवा जल संरक्षण कि उपयोगिता पर कमुआ के प्रगतिशील कृषक श्री अशोक गुप्ता ने व्याख्यान दिया और साथी किसान भाइयों को प्राकृतिक खेती अपनाने हेतु प्रेरित किया साथ ही प्रगतिशील कृषक श्री विनोद कुमार मौर्या ने जैविक विधि से औषधीय एवं सगंध पौध की खेती एवं बाजार व्यवस्था पर किसानों को प्रेरित किया।
डॉ. योगेंद्र प्रताप सिंह प्रक्षेत्र प्रबंधक कृषि विज्ञान केंद्र ने जानकारी दी कि प्रदेश में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली स्थापित करने वाली पंजीकृत निर्माता फर्मों में से किसी भी फर्म से कृषक अपनी इच्छानुसार आपूर्ति/स्थापना का कार्य कराने हेतु स्वतंत्र है। कार्य के भौतिक सत्यापन के उपरांत अनुदान की धनराशि (डीवीटी) द्वारा सीधे लाभार्थी के खाते में भेजी जाएगी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रक्षेत्र प्रबंधक डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में जनपद के विभिन्न क्षेत्रों से कुल 50 कृषकों ने सक्रिय प्रतिभागिता की।

 

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