असफलताओं में ही सफलता के बीज होते हैं…

बार-बार असफलता मिलने से घबड़ाने की ज़रूरत नहीं है। बस आप अपने अंदर झांकिये और असफलता के बीज को ढूंढने का प्रयास कीजिए। अगली बार फिर पूरी तैयारी के साथ लक्ष्य की ओर बढ़िये।
फिर भी असफलता मिलती है तो अब और गहनता से उस बीज को ढूढ़िये। उस तरह जिस तरह से मोती ढूढ़ने के लिए गोताखोर कई बार समुद्र में डुबकी लगाते हैं। मैंने गाँव में देखा था कि जब कुँआ से पानी निकालते समय डोरी टूट जाती थी तो बाल्टी या गगरा गहरे कुँआ में तलहटी में चला जाता था। गांवों में गोताखोर होते थे।

वे कई बार उस कुँए में डुबकी लगाने के बाद आखिरकार वह उस बाल्टी या गगरा को बाहर निकालकर लाते थे। वे घबड़ाते नहीं थे। एक मेरे परिचित हैं। अपने अंतिम प्रयास में पीसीएस परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किए और आई ए यस होकर रिटायर हुए। एक दिन मैं टेलीविजन पर संगीत का आइडियल प्रोग्राम देख रहा था। वह बंदा लगातर कई वर्षों तक असफलताओं के दौर से गुजरने के बाद मंच पर बड़े-बड़े लोगों के साथ ज़ज के रूप में विराजमान था।
उसे कभी ऑडिशन देते समय जावेद अख्तर साहब ने उसके कमियों को उजागर करते हुए कहा था कि सब तो ठीक है परंतु तुम इस कमी को दूर कर लोगे तो सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंच सकते हो। अब बात यह है कि सलाह देने वाले तो बहुत से लोग मिलेंगे परंतु उसे लेने वाले पर निर्भर करता है कि वह उस पर कितना गौर करता है। उसने जावेद अख्तर जी के सलाह को गौर किया और अब मंचों पर निर्णायक मंडल में शामिल होने लगा है।
इसी पर उस मंच पर एक बच्चे ने उसके इस गीत को गाया- कैसे हुआ इतना जरूरी कैसे हुआ। जिस दिन आप जरूरत को जरूरी है, के रूप में समझ लेंगे तो निश्चित रूप से आप भी सफलता के ऊँचाइयों को छू लेंगे। फिर आपके लिए भी लोगबाग य़ह गाते हुए झूम उठेंगे- कैसे हुआ इतना जरूरी कैसे हुआ।
डॉ जगदीश सिंह दीक्षित
जनपद—वाराणसी।

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