शुभांशू जायसवाल
जौनपुर। अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) जौनपुर द्वारा नगर के वाजिदपुर तिराहे के पास स्थित एक उपवन में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर भक्तों ने भक्ति का अद्भुत अनुभव किया। कथा व्यास कमल लोचन प्रभु (अध्यक्ष इस्कॉन मीरा रोड—मुंबई एवं वापी—गुजरात) ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए भक्तों को आध्यात्मिक आनंद से सराबोर कर दिया।
उन्होंने अपने प्रवचनों में कहा जनता का एक बड़ा हिस्सा खुद ही हर चीज को अपने सही नजरिए से देखने में अंधा है और अब उन्हें विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं के तहत ऐसे ही अंधे नेताओं का अनुसरण करने के लिए मजबूर किया जाता है।
उन्हें ऊपर बताए गए बहुरंगी आदर्शों में से किसी एक का अनुसरण करने के लिए मजबूर किया जाता है जो निश्चित रूप से लंबे समय में विफल हो जाएगा, इसलिए उन्हें व्यावहारिक रूप से आशा के विरुद्ध आशा करने के लिए मजबूर किया जाता है।
उन्होंने कहा कि आशा के विरुद्ध आशा रखने वाले बहुत से दल हैं और जब भी इंद्रिय-तृप्ति की प्रक्रिया विफल होती है तो विभिन्न दलों को हिंसक खतरों में डाल दिया जाता है। प्रत्येक दल की यह खतरनाक स्थिति उन्हें एक दूसरे से लड़ने के लिए प्रेरित करती है। अंत में लोगों के लिए अज्ञात झूठी विचारधारा के लिए एक दल दूसरे का शिकार बन जाता है। भौतिक शिक्षा के ईश्वरविहीन विकास के कारण इस कलियुग का सांप्रदायिक दंगा अब एक सामान्य घटना है।
हालांकि बेचारे अनुयायियों और निर्दोष राहगीरों को ऐसी विचारधाराओं का सामना करना पड़ता है और ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लोगों का एक बड़ा हिस्सा धीरे-धीरे ईश्वरविहीन सभ्यता की निराशाजनक स्थिति की ओर धकेला जा रहा है जिसे जीवन की आध्यात्मिक स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है और वे अब इंद्रिय-तृप्ति की भ्रमित अवस्था में अंधेरे में रखे गए हैं।
कथा वाचक ने कहा कि ऐसे लोग जो आशा के विरुद्ध आशा की श्रृंखला में इन्द्रिय-तृप्ति द्वारा सुख की खोज करते हैं, वे अवैध तरीकों से धन संचय करने का प्रयास करते हैं। अशुद्ध चेतना में परमेश्वर के स्वामित्व के अधिकार के ज्ञान के बिना सब कुछ अवैध रूप से संचित किया जाता है, क्योंकि हमारे पास जो कुछ भी है, वह सब परमेश्वर का है।
धन का यह अवैध संचय न केवल काले बाजार में बल्कि अवैध तरीकों से खुलेआम दिन के उजाले में भी किया जाता है। यहां तक कि तथाकथित संन्यासी भी परमेश्वर के स्वामित्व के अधिकार को भूलकर इन्द्रिय-तृप्ति के लिए निजी संपत्ति बनाने के लिए अवैध रूप से जनता से दान एकत्र करके धन संचय करते हैं।
कट्टर इन्द्रिय-तृप्ति करने वालों की ब्लैकमेलिंग की कोशिश के कारण अब काला बाजार शब्द का प्रचलन समाप्त हो गया है। काला बाजारी की ऐसी प्रबल इन्द्रिय-तृप्ति प्रवृत्ति से प्रभावित होकर अब यह अनुभव किया जाने लगा है कि करोड़पति लोग भी कभी-कभी दूसरों के धन का आपराधिक दुरुपयोग कर लेते हैं।
जब कोई गरीब आदमी आपराधिक दुरुपयोग करता है तो हम गरीब आदमी की गरीबी से प्रेरित प्रवृत्ति को समझ सकते हैं लेकिन जब हम देखते हैं कि कोई करोड़पति व्यापारी या उच्च प्रशासक या पवित्र संन्यासी (?) ऐसे आपराधिक अपराध कर रहा है तो हम नास्तिक सभ्यता द्वारा उत्पन्न इन्द्रिय-तृप्ति प्रवृत्ति के प्रबल निर्देश को समझ सकते हैं।
ऐसी अवैध इन्द्रिय-तृप्ति प्रक्रिया आशा के विरुद्ध आशा के रूप में कार्य करती रहती है और वे कभी भी बल या कानून द्वारा संतुष्ट नहीं होती हैं। नास्तिक सभ्यता इन्द्रिय-तृप्ति की आशा के विरुद्ध आशा की इस प्रक्रिया को तेज कर सकती है लेकिन पशुता का यह वातावरण कभी भी वांछित शांति नहीं ला सकता।
यजमान के रूप में हितेश गुप्ता एवं रचना गुप्ता रही। संयोजक डा. क्षितिज शर्मा ने सभी भक्तों से अपील किया कि वे इस पवित्र कथा में भाग लेकर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करें और भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ें।