आओ दिलों को जोड़ें

नजमुस्साकिब अब्बासी नदवी
संत निज़ामुद्दीन औलिया के यहाँ एक प्रसंशक उपहार स्वरूप कैंची ले आया, हज़रत निज़ामुद्दीन ने कहा, मुझे कैंची की ज़रूरत नहीं, मेरा काम काटना-फाड़ना नहीं। अगर देना है तो सूई लाकर दो क्योंकि मैं दिलों को सीता और जोड़ता हूँ, कैंची तो काटने और फाड़ने की चीज़ है और सूई जोड़ने और मिलाने की।
सच्ची बात तो यही है कि आजकल कैंचियाँ ही कैंचियाँ चल रही हैं जो निर्दोषों के जिस्मों को फाड़ और दिलों को चीर रही हैं, जिसे देखो कैंचियाँ लेकर आफ़त मचाये हुए है, मगर कोई सूई लेकर टूटे हूए दिलोंकी रफूगरी नहीं कर रहा है, कोई दिलों को सी नहीं रहा है।
दरअसल लोग अपने इंसान होने का मतलब ही भूल चुके हैं। पहले कहा जाता था कि शैतान नेवरगला दिया मगर अब तो लोग ही शैतान ही बन बैठे जहां कहीं भी उन्हें धर्म के कथितखतरे की सुगबुगाहट सुनाई दी,लाठी -डंडा उठाया और चलपड़ेतथा धर्म योद्धा कहलाने की ललक में दो-चार को पीटकर या जान से मारकर आ गए, जब रिसर्च हुई तो पता चला कि जो मारे गए वह तो निर्दोष थे।
दरअसल लोग कौवा कान ले गया के क्रियात्मक उदाहरण बन चुके हैं, पॉवर के नशे में कुछ सुझाई ही नहीं देता कि जिनको मारा गया वह भी किसी की मां का लाल होगा, किसी का पिता या पति होगा, कोई कितना तड़पा होगा, कोई कितना रोया होगा, कितने आहें निकली होंगी, कोई सुधबुध खो बैठा होगा, कोई शून्य में निहार रहा होगा क्योंकि सब कुछ ख़त्म जो हो गया।
सब कुछ दिल ही से है जब दिल ही भेड़ियों जैसा हो गया तो सद्भावना और मानवता के बातें उसे चुभेगी बल्कि अब तो कइयों के दिल, दिल कम पत्थर के सिल ज़्यादा बन चुके हैं लेकिन इन सबके बावजूद हमें निराश नहीं होना चाहिये क्योंकि हमारा इतिहास मुहब्बत की कहानियों से अटा पड़ा है, खून के छींटे उड़ाने वाले कुछ ही होंगे मगर प्रेम की गंगा बहाने वाले बहुत हैं। कुछ लोग भले ही नफरत की खेती करके लोगों के पेट में दुश्मनी का लुकमा देना चाहते हों मगर इस लुकमे से देश को बचाने की जद्दोजहद करने वालों की आज भी अधिकता है।
सीधी सी बात है कि ईश्वर/अल्लाह में आस्था रखने वाले ये मानते हैं कि सभी एक माता-पिता के संतान हैं। मगर अजीब बात है कि जहाँ कहीं भी धर्म ख़तरे में है का नारा लगा तो लोग एक माता-पिता वाली आस्था भूलकर एक दूसरे का गला काटने दौड़ पड़ते हैं, जब आंख खुलती है और होश आता है तो पता चलता है कि उसने अपने भाई-पिता, बहन-मां को ही मार डाला, अपने दोस्त की ही गर्दन रेत दी, दंगों में विश्वास और भरोसे का ऐसा क़त्ल होता है कि दशकों इस सदमे से उबरने में लग जाते हैं।
यदि एक दंगा खून की नदियां बहाने के लिये है तो ज़रूरत है कि कई गंगा प्रेम, भरोसा, त्याग और अनुराग की बहाई जाय जिसमें डुबकी लगाकर इंसान, इंसान बनकर इंसानों के साथ इंसानों जैसा सुलूक करे और खून की बहती नदी को सुखाकर उसमें मानवता और सद्भावना के फूल खिलाये।
ये दुनिया एक कुम्हार अर्थात रब/ईश्वर की बनाई हुई है। कुम्हार की तरह उसे भी पसंद नहीं है कि इंसान के रूप में उसने जो माटी के पुतले बनाये हैं उसे कोई तोड़े-फोड़े, कोई मज़ाक़ उड़ाए। मशहूर किस्सा है कि एक कवि की चर्चा दूर तक फैली तो लोग उससे मिलने आये,देखा तो कवि काला भुजंग था, वह लोगदेखकर हंसने लगे तो कवि ने कहा ‘बर्तन पर हंस रहे हो या बर्तन बनाने वाले पर?’
लड़ाई-झगड़े के कारणों में किसी को हेय दृष्टि से देखना, अपने को उच्च समझना, अपने धर्म-समुदाय, अपनी विचारधारा और विचार को सबसे बढ़िया समझकर किसी से दोयम दर्जे का व्यवहार करना आदि है। समाज इन सब बातों से निजात पा जाए तो सद्भावना और मानवता की ठंडी बयार बहाई जा सकती है। उसके लिये जरूरी है कि एक दूसरे से मिलना-जुलना किया जाय, एक दूसरे पर भरोसा जताया जाय।
एक दूसरे के लिये स्पेस पैदा किया जाय,एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल हुआ जाय तो यकीनन एक दिन देश की ऐसी तस्वीर पूरी दुनिया में सबसे अच्छी तस्वीर बन सकती है बशर्ते कि हम सब इसकी कोशिश करें।
हमारा मानना है कि इंसानियत एक ऐसा एहसास है जो हमारे जीवन में बहुत मायने रखता है।
वह एक ऐसी भावना है जो हमें एक दूसरे के प्रति सहानुभूति और समर्थन की ओर उभारती है। इंसानियत हमें यह याद दिलाती है कि हम सभी एक हीपरिवार के सदस्य हैं और हमें एक दूसरे के प्रति प्यार,करुणा और सहानुभूति की भावना रखनी चाहिए।
इंसानियत एक अनमोल धरोहर है जो हमें इंसान होने का एहसास दिलाती है इसलिए हमें इंसानियत के मूल्यों को अपने जीवन में उतारना चाहिए। इंसानियत जो दया और प्रेम का प्रतीक है, किसी भी समाज की सबसे बड़ी ताकत और उसकी जरूरत है। यह वह मूलभूत मूल्य है जो समाज को एकजुट करता है और उसे शांति, सहयोग और प्रगति की ओर ले जाता है।
इंसानियत का अर्थ है दूसरों की मदद करना, बिना किसी स्वार्थ के दया और करुणा दिखाना। यह जाति, धर्म, भाषा या सामाजिक स्तर से परे जाकर हर इंसान के प्रति सम्मान और सहानुभूति का भाव रखता है। इंसानियत समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों को जोड़ने का काम करती है। जब लोग एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग का भाव रखते हैंतो समाज में एकता और शांति का माहौल बनता है।
जब समाज के लोग जरूरतमंदों की मदद करते हैं तो हर व्यक्ति को आगे बढ़ने का अवसर मिलता है और वह समाज को आत्मनिर्भर व प्रगतिशील बनाता है।
इंसानियत के मूल्यों को अपनाने से हर व्यक्ति के अधिकारों और स्वतंत्रता का सम्मान होता है।
यह समाज में भेदभाव और असमानता को कम करता है। प्राकृतिक आपदाओं, महामारी या अन्य संकट के समय इंसानियत की भावना ही हमें मिलकर इन समस्याओं का सामना करने की शक्ति देती है जहां इंसानियत का अभाव होता है, वहां असमानता, हिंसा, और स्वार्थ का बोलबाला हो जाता है। समाज में नफरत और भेदभाव का माहौल बनने लगता हैजो अंततःसमाज की प्रगति में बाधा बनता है।
समाज में मानवता का आम माहौल बने तो उसके लिए बच्चों और युवाओं को शुरु से ही दया, करुणा और सेवा के मूल्यों की शिक्षा दी जानी चाहिये। जरूरतमंदों की मदद के लिए समाज में सेवा कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए, जैसे मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के अवसर। इसी तरह समाज में ऐसे व्यक्तियों को प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिन्होंने इंसानियत की मिसाल कायम की हो।
अंत में यही कहना है कि इंसानियत समाज की रीढ़ है। यह वह शक्ति है जो हमें बेहतर मनुष्य और समाज बनाने की प्रेरणा देती है। अगर हम इंसानियत को अपने जीवन का आधार बनाएं तो हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहां शांति, प्रेम और समृद्धि का साम्राज्य हो।
हमें यह याद रखना चाहिए कि इंसानियत ही वह पुल है जो हमें एक बेहतर भविष्य की ओर ले जाता है।
(लेखक नया सवेरा फाउण्डेशन के संस्थापक और समावेश फेलोशिप के मेंटर हैं)

 

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