प्रजातंत्र का तन्त्र

भारत के गणतंत्र की,
ये कैसी है शान।
भूखे को रोटी नहीं,
बेघर को पहचान।।
सब धर्मों के मान की,
बात लगे इतिहास।
एक-दूजे को काटते,
ये कैसा परिहास।।
प्रजातंत्र का तंत्र अब,
लिए खून का रंग।
धरम-जात के नाम पर,
छिड़ती देखो जंग।।
पहले जैसे कहाँ रहे,
संविधान के मीत।
न्यारा-न्यारा गा रहा,
हर कोई अब गीत।।
विश्व पटल पर था कभी
भारत का सम्मान।
लोभी नेता देश के,
लूट रहे वह मान।।
रग-रग में पानी हुआ,
सोये सारे वीर।
कौन हरे अब देश में
भारत माँ की पीर।।
मुरझाये से अब लगे,
उत्थानो के फूल।
बिखरे है हर राह में,
बस शूल ही शूल।।
आये दिन ही बढ़ रहा,
देखो भ्रष्टाचार।
वैद्य ही जब लूटते,
करे कौन उपचार।।
कैसे जागे चेतना,
कैसे हो उद्घोष।
कर्णधार ही देश के,
लेटे हो बेहोश।।
प्रियंका ‘सौरभ’

ADVT 2024 Gahna Kothi Jaunpur

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here