
जगह-जगह से लेके…
सरपत-सुतरी और सूखल बम्बू…
बिगहन में देखा भईया तनल हौ तम्बू
सच बताईं तोहसे भईया…!
एगो नया जिला तैयार बा…
बिछल बा भीतर पुअरा-लकड़ा,
बरत बा वोहीं कौड़ा तगड़ा…
बिजली बत्ती से खूबै उजियार बा…
कतहुँ देखा रमल ह धूमी,
कतहूँ चीलम भइल चटकार बा…
भजन-कीर्तन डगर-डगर में,
सबै कइले कुछ नया श्रृंगार बा…
कदम-कदम पर उहवाँ भैया,
लागल देसी बजार बा…
केहू चना-चबैना लेहले हउए,
केहू मंडुआ के ढूँढ़ी…
केहू देखात हउए टीवी पर,
खात अचार संग ठोकवा-पूड़ी…
केहू हेरायल बा मेला में,
केहू ढेरै पुलिस देख डेरायल बा…
केहू पीपा के पुल पर…!
डोलै में सकपकाइल बा…
कहै बरे सब घाट अलग हौ… लेकिन
कुलि घाटन पर भीड़ लगल हौ…
प्रभु वचन हौ चारिउ ओर…!
संग में ढोल-मजीरा औ हरमुनिया,
सब ओरी गुलजार बा…
पाप के मटकी फोरै खातिर…!
सुर-असुर, नर-किन्नर, चिरई-कौआ
सब ढुढले हऊअन आपन ठउआँ…
पूण्य के डूबकी लेवे खातिर,
सबही इहवाँ बेकरार बा…
मेलवा में थकान कतहुँ ना लागत बा,
भूख-पियास खुदे सब भागत बा…
मनवा में सकल कुंभ घूमै के…!
उत्साह दुगुन खुद होय जात बा…
मेलवा कै शोभा देखि-देखि के भैया,
मनवा तनिको नहीं अघात बा…
केहू भागत हौ पूर्व से पश्चिम,
केहू दक्षिण से उत्तर जात बा…
साँच कहूँ तोहसे भईया…!
इहवाँ अलग-अलग चरित्र,
चारिउ ओरी देखात बा…
एक बात अउर कहीं हम भईया,
गजब व्यवस्था कइले ई सरकार बा…
उड़न खटोला बरसवात बाटै फूल,
देख के ई अचरज भईया…!
सब कुछ तू जइबा भूल…
मगन भईल इहाँ सकल संसार बा…
माना तू हमरो बतिया भइया…!
मेला में घड़ी देखले कै,
नाहीं कोनो दरकार बा…
अपने-अपने आनन्द में इहवाँ सबही,
मन ही मन में मुस्कात बा…
सबै कहत हौ… सुना हो भइया…!
ई महाकुंभ त… सच में… जैसे…
लागत भोले क… बरात बा…
सब कुछ बाटै ई तीर्थराज में…
लंदन-पेरिस गइले क…!
नाहीं कौनो काज बा…
धरम-करम से भी भइया…
सब मानत हौ… सब जानत हौ…
महिमा ई महाकुम्भ के…!
बेहद अपरम्पार बा…
महिमा ई महाकुम्भ के…!
बेहद अपरम्पार बा…
रचनाकार——जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ








