नहिं परागु नहिं मधुर मधु,
नहिं बिकासु इहिं काल।
अली कली ही सौं बंध्यौ,
आगे कौन हवाल॥
नायिका में पूर्ण आसक्त देख नायक
को शिक्षा देते हुए कवि कहता है कि
न अभी इस कली में पराग आया है,
न कली में मधुर मकरंद ही आया है।
नायिका यौवन में मदमस्त अरे ओ
नायक जब यह कली फूल बनकर
पराग तथा मकरंद से युक्त होगी,
उस समय तुम्हारी क्या दशा होगी।
कविवर बिहारी ने राजा जयसिंह को
व्यंग्य करते हुए यह कहा कि विवाह
के बाद वह अपने जीवन में रानी के
साथ कितने अधिक तल्लीन हो गये।
विकास कार्य की तरफ उनका कोई
ध्यान ही नहीं हैं और राजकीय कार्य
से भी दूर हो गए हैं ऐसे में राज काज
संचालन का भार कौन सम्भालेगा!
बिहारी की यह रचना सीधे राजा
जयसिंह पर एक तीक्ष्ण कटाक्ष थी,
व तगड़ा झटका देने वाली भी थी,
राजा जयसिंह को झटका लगा भी।
व्यंग्य से राजा जयसिंह संभले भी,
अपनी रानी के आसक्ति से निकले
और अपने राज्य कार्य में शुरू कर
दिया पूरा व उचित ध्यान देना भी।
कविवर विहारी जी के शब्द कितने
असरदार थे, जिससे प्रतीत होता है
कि मानव अपने स्वभाव के अनुरूप
मृगतृष्णा के पीछे भागता ही रहता है।
बिहारी जी के दोहे कितना असरदार
हैं उनके इस दोहे से पता चलता है,
“सतशैया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर,
देखन में अच्छे लगैं, घाव करैं गम्भीर”।
वातावरण और जमाना, दोनो उन
लम्हों को भी उजागर करते हैं,
किसी उपमा से, किसी को सीख दें,
उसे अन्योक्ति अलंकार कहते हैं।
आदित्य वर्तमान में यदि कोई शख़्स
किसी शासक या प्रशासक को इस
तरह का किसी व्यंग्य रूप में लिख दे,
तो लेखक की कैसी शामत आए।
कर्नल आदिशंकर मिश्र ‘आदित्य’
जनपद—लखनऊ।








