अमृत कुम्भ में बने पुण्य के भागी हम

चलते चले सभंल के दूर गामी हम
बढ़ी भीड़ में किसकी होती सुनवाई
अपने विछड़ रहे हैं कैसे संभले हम।
सरकारी मरहम तो लग जाएगा
गया जो लौट के फिर नहीं आएगा
उसके लिए ये अमृत कुंभ कैसा
बस जीवन में आशुं ही रह जाएगा।
नमन वंदन है उस राही से
भूल न पाया डुबकी साही से
करूण क्रंदन से माहौल बदला
घायलों को देख पूछते सिपाही से।
मेला प्रशासन जाग रहा था
भीड़ से कुछ मांग रहा था
उसकी नहीं सुनी किसी ने
शायद घटना भांप रहा था।
मीडिया लाइव सब कुछ देखा
जीवन की खिंची लक्ष्मण रेखा
अपने को खोज रहे उम्मीदों में
हताश हो कौतूहल से संगम देखा।
शायद कोई चूक रही होगी
कोई न कहे कुछ भूल रही होगी
भीड़ किसी कि सुनती क्यों
भगदड़ कि वजह कुछ रही होगी।
देवी प्रसाद शर्मा ‘प्रभात’
 आजमगढ़
मो.नं. 7008310396

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