रूपा गोयल
बांदा। श्री लइना बाबा सरकार धाम शिवरामपुर जिला चित्रकूट की विशेष अनुकंपा से महाकुंभ के उपलक्ष्य में तहसील नरैनी गांव सढा की वैष्णो माता मंदिर धाम प्रांगण में चल रही 9 दिवसीय श्री शिवमहापुराण कथा में राजस्थान अलवर से पधारे जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज के कृपा पात्र श्री शिवमहापुराण कथा के राष्ट्रीय कथा वाचक राष्ट्रीय संत स्वामी कमलदास जी बापू ने आज शिव जी के समस्त ब्रतों की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि शिव जी के ब्रत करने वालों की एवं शिव जी का प्रसाद मांग के खाने वालों के पूर्ण होते है सभी मनोरथ। उन्होंने आगे कहा कि यज्ञ, हवन, पूजा और अन्न ग्रहण करने से पहले भगवान शिव को नैवेद्य एवं भोग अर्पण की शुरुआत वैदिक काल से ही रही है। प्राचीनकाल से ही प्रत्येक हिन्दू भोजन करते वक्त उसका कुछ हिस्सा देवी-देवताओं को समर्पित करते आया है।
यज्ञ के अलावा वह घर-परिवार में भोजन का एक हिस्सा अग्नि को समर्पित करता था। अग्नि उस हिस्से को देवताओं तक पहुंचा देता था। चढा़ए जाने के उपरांत नैवेद्य द्रव्य निर्माल्य कहलाता है। शतपत ब्राह्मण ग्रंथ में यज्ञ को साक्षात भगवान शिव का स्वरूप कहा गया है। शास्त्रों में विधान है कि यज्ञ में भोजन पहले दूसरों को खिलाकर यजमान करेंगे। वेदों के अनुसार यज्ञ में हृविष्यान्न और नैवेद्य समर्पित करने से व्यक्ति देव ऋण से मुक्त होता है। प्राचीन समय में यह नैवेद्य (भोग) अग्नि में आहुति रूप में ही दिया जाता था, लेकिन अब इसका स्वरूप थोड़ा-सा बदल गया है। पूजा-पाठ या आरती के बाद तुलसीकृत जलामृत व पंचामृत के बाद बांटे जाने वाले पदार्थ को प्रसाद कहते हैं।
पूजा के समय जब कोई खाद्य सामग्री देवी-देवताओं के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तो वह सामग्री प्रसाद के रूप में वितरण होती है। इसे नैवेद्य भी कहते हैं।यह नैवेद्य या प्रसाद जब व्यक्ति भक्ति-भावना से ग्रहण करता है तो उसमें विद्यमान शक्ति से उसे लाभ मिलता है। पत्रं, पुष्पं, फलं, तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनरू।श्अर्थात जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुण रूप में प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूं। श्री चित्रकूट धाम शिवरामपुर जिला चित्रकूट से साथ में आईं बापू जी की धर्मपत्नी ज्ञानवती देवी मिश्रा ने बताया कि चौथे दिन की कथा सुनने वालों में कथा के मुख्य यजमान प्रमोद सोनी धर्मपत्नी रुची, मंदिर पुजारी राजू जी धर्मपत्नी रानी, भोला प्रसाद सोनी धर्मपत्नी किशोरी देवी, प्रेम चंद सोनी धर्मपत्नी कौशल्या, रामबाबू सोनी धर्मपत्नी मुन्नी, रामशरण सोनी धर्मपत्नी जमुना, राकेश सोनी धर्मपत्नी सरगम, अनूप सोनी, बाबूलाल कुशवाहा, रामू सोनी धर्मपत्नी विमलेश, दादूलाल सिंह व सैकड़ों की संख्या में माताएं, बहनें उपस्थित रहीं।