पतंग की डोर के रूप में सिर्फ काटन धागा ही उपयोग कर सकते हैं: विकास तिवारी
जौनपुर। दीवानी न्यायालय के अधिवक्ता आशीष शुक्ल व शिवराज यादव मोटरसाइकिल से यात्रा के दौरान 13 जनवरी को शास्त्री पुल शेषपुर पर पतंग उड़ाने वाले प्रतिबंधित धागा में फंसकर जख्मी हो गये थे। उन्हें मांझे में फंसता देख पुल के पश्चिम दिशा में स्थित मैदान और छत पर खड़े होकर पतंग उड़ा रहे कुछ लोग उत्सव मनाने लगे। साथ ही दोनों लोगों की तरफ इशारा करके तालिया बजाने लगे।
मांझे से किसी तरह अपनी जान बचाकर तथा प्रारंभिक इलाज के बाद उक्त दोनों लोगों ने मामले की सूचना लाइन बाजार थाने सहित उच्चाधिकारियों को दिया लेकिन कोई कार्यवाही न होने पर कोर्ट के माध्यम से छः अज्ञात लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराने का वाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में अधिवक्ता विकास तिवारी के माध्यम से प्रस्तुत किया। न्यायालय ने श्री तिवारी के तर्कों को सुनने के बाद थाना लाइन बाजार से आख्या तलब करते हुए मामले का दर्ज रजिस्टर कर लिया।
अधिवक्ता विकास तिवारी का कहना है कि प्रतिबंध के बाद भी चीनी मांझा और प्रतिबंधित नायलॉन धागा व प्रतिबंधित सिंथेटिक से लेपिट धागा तथा गैर बायोडिग्रेडेबल मांझे बेचे जा रहे हैं। जनपद प्रशासन की राष्ट्रीय हरित अधिकरण नई दिल्ली के निर्णय को अक्षरशः लागू करने में पूर्ण विफलता रही है। चीनी मांझा/नायलॉन मांझा के कारण मनुष्यों के अलावा पक्षी, बंदर भी बार-बार घायल हो रहे हैं।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने खालिद अशरफ एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य में 11 जुलाई 2017 के निर्णय द्वारा नायलॉन या किसी भी सिंथेटिक सामग्री से बने माझे पर पूर्ण प्रतिबंध लागू करने के लिए छह बिंदु निर्देश जारी किये हैं। उक्त आदेश के अनुपालन में धारा 15 पर्यावरण संरक्षण अधिनियम व धारा 11 पशु क्रूरता निवारण अधिनियम व धारा 223,109 भारतीय न्याय संहिता के अन्तर्गत अभियोग पंजीकृत करने का निवेदन किये हैं।
श्री तिवारी ने कहा कि हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आने वाले समय में हमारे जनपद में पतंग उड़ाने के लिए सिर्फ काटन के धागे का ही प्रयोग किया जायेगा। अन्य सभी धागों पर पूर्णत: रोक लगेगी। जो भी कोई पतंग उड़ाने के लिए प्रतिबंधित धागों का प्रयोग करेगा, उसके विरुद्ध गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज कराया जायेगा।
न्यायालय का स्पष्ट अभिमत है कि पतंग उड़ाने वाले प्रतिबन्धित धागा व मांझे पर प्रतिबन्ध भले ही पर्यावरण कानून के तहत लगा परन्तु इसके इस्तेमाल की वजह से अगर कोई ऐसा अपराध हुआ हो जो दूसरे कानून की अन्तर्गत दण्डनीय है तो अभियोजन को दूसरे कानून के तहत ही प्राथमिकता दी जायेगी। पर्यावरण संरक्षण कानून की धारा 24 में साफ तौर पर ऐसा प्रावधान है।