हमारे मानव जीवन में आत्म नियंत्रण
का विशेष महत्व होता है, जिसको
आत्मसात् कर जीवन में हम विषम
परिरिस्थिति में भी जीत पा सकते हैं।
वाहन की तीव्र गति होने से जिस
प्रकार उसकी गति पर नियंत्रण कर
पाना मुश्किल होता है उसी प्रकार
मानव मन की गति भी तीव्र होती है।
जिसे नियंत्रित कर पाने में स्वयं के
क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या,
द्वैष जैसे अवगुण तत्व अवरोधक
बनकर सदैव हमें बाधा पहुँचाते हैं।
ईश्वर ने मनुष्य को अथाह ऊर्जावान
बनाकर सकारात्मकता के साथ उसे
जीवन जीने का एक साधन दिया है,
ताकि वह निरंतर उन्नति करता रहे।
परंतु मन के यह विकार मनुष्य को
नकारात्मकता की ओर ले जाते हैं,
और धीरे धीरे यह व्यसन बन कर
मनुष्य को पतन की ओर ले जाते हैं।
मनुष्य तब जीवन में उन्नति के पथ
पर अक्सर आगे नहीं बढ़ पाता है,
जीवन में इन व्यसनों से बचने का
एक मात्र साधन आत्म नियंत्रण है।
यानी स्वयं को नियम संयम का पथ
चुनने का एहसास होना चाहिए, इस
के लिये जीवन में मनसा, वाचा और
कर्मणा का प्रतिपादन भी किया जाय।
सद्गुणों को अंगीकृत किया जाय,
जीवन में उदारता प्रेम, धैर्य, क्षमा,
दया, तपस्या, त्याग, एकाग्रता आदि
गुणों का उचित समावेश किया जाये।
इन सभी सकारात्मक गुणों से मनुष्य
आत्मसंयम का अपने व्यक्तित्व में
उचित समावेश कर पाता है व जीवन में
उत्तरोत्तर रचनात्मक उन्नति कर पाता है।
आत्मसंयम के समावेश के लिए
आत्मावलोकन की ज़रूरत होती है,
नैतिकता व धैर्य के साथ ही आत्म
संयम को प्राप्त भी कर सकते हैं।
आदित्य हमारे जीवन में नैतिक अधो
पतन मानसिक विकारों व चारित्रिक
दुर्बलताओं पर आत्मसंयम एक
सुरक्षा कवच की तरह आवश्यक है।
डा. कर्नल आदिशंकर मिश्र ‘आदित्य’
जनपद—लखनऊ








