आस्था बेजोड़… डुबकियां रिकॉर्डतोड़, 45 दिन स्नान, पहुंचा आधा हिंदुस्तान!

  • इतिश्री महाकुंभ के 45 दिनों में दुनिया के सबसे बड़े आयोजन के आस्था के सागर में 66.30 करोड़ श्रद्धालुओं ने डुबकी लगायी। मतलब साफ है यह महाकुंभ मानव तीर्थयात्रा का अब तक का सबसे बड़ा आयोजन जिस भव्यता के साथ आरंभ हुआ था, उसी भव्यता के साथ कुंभ का समापन हो गया। देखा जाएं तो दुनिया के किसी भी देश में इतनी बड़ी संख्या वाली भीड़ बिना किसी भेदभाव व जाति के मकड़जाल से इतर एक जगह इकठ्ठी नहीं हुई है। खासकर भारत के उन लोगों के मुंह पर यह भीड़ करारा तमाचा है जो सनातन संस्कृति के प्रति घृणित बयानबाजियां करते है। उन लोगों के प्रति सबक है जो आस्था को पिछड़ापन व अंध विश्वास बताते नहीं थकते। उन लोगों को भी चेतावनी है जो सनातन के सद्भाव, आस्था व भक्ति पर चोट करते हुए जाति के बंधन में बांधकर अपनी सियासत चमकाते है। वैसे भी यह डिजिटल युग का पहला महाकुंभ है, जहां करोड़ों लोगों ने सोशल मीडिया पर महाकुंभ से जुड़ी अपनी फोटो शेयर करते हुए मानव इतिहास का सबसे बड़ा अद्भूत, अकल्पनीय व अविश्वनीय आयोजन बताया है। पहले दिन से शुरू हुआ पवित्र डुबकी लगाने का सिलसिला आज तक बदस्तूर वैसे ही जारी है, श्रद्धालुओं में वैसा ही उत्साह और उमंग आज भी देखने को मिल रहा है. हालांकि, बीते 45 दिनों में कई ऐसी चीजें देखने को मिलीं, जो भक्तों के दिलों में लंबे समय तक ताजी रहेंगी। फिर चाहे वह शाही स्नानों के बावजूद प्रयागराज में हर दिन करोड़ों लोगों के जुटने और इसके चलते जाम की स्थिति पैदा होने की घटनाएं हों या महाकुंभ में एक के बाद एक बाबाओं के वायरल होने की. जहां तक भीड़ के रिकार्ड का सवाल है तो प्रयागराज अर्धकुंभ 2019 में 24 करोड़, प्रयागराज महाकुंभ 2013 में 12 करोड़, हरिद्वार कुंभ 2010 में 7 करोड़ रहा। मतलब साफ है देश में दो दशक में सांस्कृतिक उत्थान को बल मिला है। हिन्दुत्व एकता की तस्वीर का नतीजा अयोध्या में श्रीरामलला मंदिर का निर्माण, वाराणसी काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के साथ काशी के बदले हालात व प्रयागराज में उमड़ी करोड़ों की आस्था सबसे बड़ा उदाहरण बनकर उभरा है कि जो सनातन पर बखेड़ा करेगा, उसे ऐसे ही जवाब मिलते रहेंगे

सुरेश गांधी
फिरहाल, मानवता का ’महायज्ञ’, आस्था, एकता और समता का महापर्व महाकुंभ कई मायनों में खास रहा, 144 साल बाद ऐसा अद्भुत संयोग आया था कि हर शख्स संगम में पवित्र डुबकी लगा लेने को लेकर उत्साहित था. प्रयागराज तक पहुंचने के लिए लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन संगम में डुबकी लगाने के बाद सबके चेहरे पर एक अलग तरह का संतोष भी दिखा. वैसे महाकुंभ में क्या आम क्या खास हर वर्ग के लोग आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंचे और करीब-करीब देश की आधी आबादी ने तो महाकुंभ में स्नान कर ही लिया है. 45 दिन तक चलने वाले सतातन के सबसे बड़े उत्साह पर्व में 66.30 करोड़ लोगों ने पवित्र संगम में डुबकी लगाई. यानी अमेरीकी आबादी से दोगुने लोग महाकुंभ में शामिल हो चुके हैं. जबकि यूपी सरकार ने महाकुंभ में 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान लगाया था. हर रोज औसतन डेढ़ करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। 30 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु ट्रेन से महाकुंभ पहुंचे. इसके साथ-साथ 73 देशों के डेलीगेट्स और 50 लाख विदेशी नागरिक भी महाकुंभ पहुंचे. ये एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है.
इतने बड़े आयोजन में कई रिकॉर्ड स्थापपित हुए तो चुनौतियां आईं. कभी भगदड़ में हुई श्रद्धालुओं की मौत के आंकड़ों पर सवाल हुआ तो कभी संगम के पानी पर सियासत हुई. इसके बावजूद करोड़ों लोग ममहाकुंभ के दौरान भक्ति-भाव में डूबे नजर आए. महाकुंभ तक पहुंचने के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन संगम में डुबकी लगाने के बाद सबके चेहरे पर एक अलग तरह का संतोष भी दिखा. सीएम योगी ने कहा, महाकुंभ को बदनाम करने के लिए सनातन विरोधियों ने पूरी ताकत लगाई।
हर अनैतिक फॉर्मूला अपनाया, लोगों को डराया लेकिन इसके बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह न तो कम हुआ, न ही महाकुंभ की महिमा पर कोई दाग लगा पाए। कहा जा सकता है इस दौरान कई न सिर्फ कई रिकॉर्ड टूटे, बल्कि कई नए ट्रेंड बने, काफी कुछ अलग हुआ, आयोजन पर सियासत हुई तो हादसे भी हुए. जातियों के बंधन को तोड़कर रख दिया। एक तरह से यह एक बिना शोर वाली वैचारिक बदलाव वाली क्रांति है। ऐसा इसलिए क्योंकि बीते लोकसभा चुनाव में 64.64 करोड़ लोगों ने वोटिंग की थी, जबकि 66.30 करोड़ लोगों ने बिना किसी विवाद के संगम स्नान किया है, जो भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शक्ति को प्रदर्शित करता है।

यह आयोजन गरीब और मध्यम वर्ग का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव रहा. जहां जातिगत बंधन टूटे और सभी वर्गों ने एक साथ स्नान किया. यह डिजिटल युग का पहला महाकुंभ था, जिसने विश्व स्तर पर भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाया. विश्व इतिहास में यह महाकुंभ न सिर्फ अभूतपूर्व और अविस्मरणीय आयोजन बना, बल्कि पूज्य अखाड़ों, साधु-संतों, महामंडलेश्वरों एवं धर्माचार्यों के पुण्य आशीर्वाद का ही प्रतिफल है कि समरसता का यह महासमागम दिव्य और भव्य बनकर सकल विश्व को एकता का संदेश दे रहा है।
यह सब संभव हो पाया तो सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी व सीएम के अलावा सुव्यवस्थित आयोजन के कर्णधार रहे मेला प्रशासन, स्थानीय प्रशासन, पुलिस प्रशासन, स्वच्छताकर्मियों, गंगा दूतों, स्वयंसेवी संगठनों, धार्मिक संस्थाओं, नाविकों तथा महाकुम्भ से जुड़े केंद्र व प्रदेश सरकार के सभी विभागों सहित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देने वाले सभी महानुभावों व संस्थाओं की बदौलत जिन्होंने दिन-रात अपने को हर दिन अपडेट किया।
कहा जा सकता है यह महाकुम्भ न सिर्फ आध्यात्मिकता की नई ऊंचाइयों को छुआ, बल्कि भव्यता और दिव्यता के मामले में भी दुनिया भर में एक अनूठा उदाहरण पेश किया। योगी सरकार की मेहनत और केंद्र के सहयोग से प्रयागराज का कायाकल्प हुआ, जिसने इस बार महाकुम्भ को पहले से कहीं अधिक भव्य और दिव्य बना दिया।
आम से लेकर खास तक, हर किसी ने इस पवित्र अवसर पर अपनी आस्था को साकार किया। सबसे खास बात ये रही कि महाकुम्भ की शुरुआत से पहले पीएम मोदी और सीएम योगी ने जिस एकता के महाकुम्भ का संकल्प लिया था, वो यहां साकार होता दिखाई दिया। आज तक दुनिया भर में किसी एक आयोजन में इतने बड़े मानव समागम का कोई इतिहास नहीं है। यह संख्या भारत की आबादी का लगभग 50 फीसदी है, जबकि दुनिया के कई देशों की आबादी से कहीं ज्यादा है।
इसके बावजूद महाकुंभ को लेकर सियासी जंग छिड़ा हुआ है. सपा मुखिया अखिलेश यादव योगी सरकार के कुंभ प्रबंधन व संगम जल तथा हादसों पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लालू यादव सहित विपक्षी नेताओं को पछाड़कर मृत्युकुंभ तक कह डाला। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष के सारे आरोपों व अफवाहों को निराधार बताकर अब तक का सबसे सफल महाकुंभ बताया है। इसकी गवाही खुद महाकुंभ में डुबकी लगाने पहुंचे देश-दुनिया के आस्थावान दे रहे है कि यह महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा जन समागम बन चुका है। या यूं कहे महाकुंभ के समापन होने तक 45वें दिन, डुबकी लगा चुके 66.30 करोड़ से अधिक भक्तों की आस्था अखिलेश, ममता सहित पूरे विपक्ष के मुंह पर तमाचा हैं। ये वहीं भक्त है जिन्होंने संगम में डुबकी लगाने के लिए न सिर्फ आवागमन में तमाम मुसीबतों को झेला है, बल्कि 25-30 किमी तक पैदल भी चला है। उनका कहना है कि आस्था के लिए कुछ किमी पैदल चलना या धक्का-मुक्की कोई बड़ी बात नहीं. वैष्णो देवी और मथुरा की यात्रा में भी तो चलते ही हैं. कुंभ में स्नान कर उन्हें आध्यात्मिक आनंद मिल रहा है
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हिंदू विरोध की मानसिकता से किस कदर ग्रसित हैं इस बात की बानगी महाकुंभ जैसे महाअमृत पर्व को ’मृत्यु कुंभ’ बताया। खासकर उस महाकुंभ की, जिसकी दिव्यव्यता, भव्यता और पौराणिकता पूरी दुनिया ने न सिर्फ देखी है, बल्कि इस सफल आयोजन की सराहना भी की है. लेकिन तुष्टिकरण का भूत उन पर इस कदर सवार है कि महाकुंभ के नाम के साथ मुत्यु कुंभ जोड़कर ममता ने पूरे सनातन के स्वाभिमान की जड़े हिलाकर रख दी है। इससे पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि कुंभ का कोई मतलब नहीं है. कुंभ फालतू है. तो सपा के अखिलेश यादव ने भी लालू, ममता के बयानों को सही बताते हुए लगातार महाकुंभ पर सवालिया निशान लगाते रहे. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो दावा किया कि कुंभ में हजारों लोग मारे गए हैं. सपा नेत्री जया बच्चन ने कहा कि भगदड़ में मारे गए लोगों के शवों को गंगा में बहा दिया गया है. इससे पानी प्रदूषित हुआ है और इसी में लोग स्नान कर रहे हैं. या यूं

 

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