सरयू तट पर धूम मची है,
अवध मचा होली हुड़दंग,
राम-लक्ष्मण होली खेलत
मिल सखा-सखि के संग।
पिचकारी लेकर सोने की हरि,
रंग गुलाल लिये रजत कटोरी,
राजा रंक सबै मिल खेलत,
पिचकारि हनै गौरि किशोरी।
उत बृजधाम छटा निखरी जहँ,
मुरलीधर राधा संग खेलत होली,
बृज की वनिता अरु गोकुल ग्वाल,
बजावत ताल मृदंग मंजीरा की होली।
इनके हाथन पिचकारि चली,
उन हाथन लाल गुलाल की गोरी
देखि सखा सखि सुख कौन कहे,
रति काम मनोज लजावत जोरी।
हमहूँ द्वेष भुलाय त्यागि ईर्ष्या, मद,
प्रेम सहित मिलि खेलत हौं होरी,
दंभ जलाई, अहंकार जलाई सबै,
संग सखा सखि जलावत हौं होरी।
माँगत माफि लगावत रंग, अबीर,
मुसुकान बिखेरि हँसी औ ठिठोरी,
आदित्य गुलाल के साथ खिलावत
हौं हमहूँ पान सुपारी के साथ गिलोरी।
डा. कर्नल आदिशंकर मिश्र
‘विद्या वाचस्पति’ जनपद—लखनऊ