विधना की सुंदर रचना नारी,
जैसे सूरज, चाँद, सितारे दिखते,
उनका वर्णन न कर सके कोई,
करे तो जग को मूरख लगते।
उसी प्रकृति ने की है नारी की रचना,
उसे जानने समझने का अद्भुत गुण,
जिसकी तुलना किसी से भी करना,
प्रकृति को झुठलाने जैसा है दुर्गुण।
नारी को समझना जानना शायद
अच्छा हो, कुतर्क करना ठीक नहीं,
सीता,राधा,लक्ष्मी, गौरी, दुर्गा पर
करें गर्व उनको झुठलाना ठीक नहीं।
धीरज धरम मित्र अरु नारी।
आपदकाल परखिए चारी॥
यात्रा में ज्ञान, घर में अपनी घरवाली।
दवा रोग में, मरने पर धर्म बलशाली॥
नारी जगत की जननी होती है,
नारी घर परिवार की लक्ष्मी है,
वैसे तो हर नारी सुकुमारी है,
पर नारी ही दुर्गा महाकाली है।
आदित्य नारी की जहां पूजा होती है,
वहीं ईश्वर व देवता निवास करते हैं,
नारियां स्वयं देवी का स्वरूप होती हैं,
नर का जीवन संवारने वाली नारी हैं।
डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘विद्या वाचस्पति’ लखनऊ।