आधुनिकता की चकाचौंध में गुम होते जा रहे होली के पारम्परिक रंग

  • विलुप्त हो रही भाग गायन की परम्परा

शरद अवस्थी
डीह, रायबरेली। रंगों का त्यौहार होली भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है लेकिन आधुनिकता के इस दौर में हमारी परंपराएँ धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं। पहले जहाँ लोग टेसू के फूलों से बने प्राकृतिक रंगों से होली खेलते थे, वहीं अब रासायनिक रंगों का प्रचलन बढ़ गया है जो त्वचा और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
फाग गीतों की मधुर धुनों की जगह आज डीजे के शोर ने ले ली है जिससे पारंपरिक संगीत और नृत्य की परंपरा खतरे में है। गाँवों में भी अब होली के पारंपरिक रीति-रिवाजों की जगह आधुनिक तौर-तरीकों ने ले ली है जिससे हमारी सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुँच रहा है।
यह आवश्यक है कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए मिलकर काम करें और युवा पीढ़ी को अपनी परंपराओं के महत्व के बारे में शिक्षित करें तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बचा सकते हैं।

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