कटनी के दिनवाँ में कटनी करईबै रामा,
कटनी करईबै रामा…
छन- छन चरनियाँ निहरबै संवरिया रे।
खेत-खरिहनवाँ में बीती उमीरिया रामा,
ऊपरा से झम-झम बरसी बदरिया रामा।
भिंजले से गम-गम गमकी चुनरिया रे,
छन- छन चरनियाँ निहरबै संवरिया रे।
कटनी के दिनवाँ में कटनी करईबै रामा,
कटनी करईबै रामा…
छन-छन चरनियाँ निहरबै संवरिया रे।
ओहो खरिहनवाँ में अँखिया लड़ईबै रामा,
गोरे-गोरे हथवा से चटनी छटईबै रामा।
छम-छम रातभर बाजी पयलिया रे,
छन-छन चरनियाँ निहरबै संवरिया रे।
कटनी के दिनवाँ में कटनी करईबै रामा,
कटनी करईबै रामा…
छन-छन चरनियाँ निहरबै संवरिया रे।
लोगवा कहत औरत होनी कसईया रामा,
खुनवाँ के छिंटवा से रंगत अँचरिया रामा।
नाहीं बाटिन अइसन सगरो मेहरिया रे,
छन-छन चरनियाँ निहरबै संवरिया रे।
कटनी के दिनवाँ में कटनी करईबै रामा,
कटनी करईबै रामा…
छन-छन चरनियाँ निहरबै संवरिया रे।
रामकेश एम. यादव
‘सरस’ मुम्बई।


















