शरद अवस्थी
डीह, रायबरेली। निजी स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि और अन्य खर्चों से अभिभावक परेशान हैं। नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के साथ ही कई निजी स्कूलों ने ट्यूशन फीस में भारी वृद्धि कर दी है जिससे मध्यम और निम्न-आय वर्ग के परिवारों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों द्वारा हर साल पाठ्यक्रम में बदलाव किया जाता है जिससे उन्हें नई किताबें और स्टेशनरी खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके अलावा कई स्कूल यूनिफॉर्म और अन्य सामान के लिए विशेष दुकानों को निर्धारित करते हैं जहां कीमतें अक्सर बाजार से अधिक होती हैं। वर्तमान में शिक्षा को ज्ञान का माध्यम कम और व्यवसाय का जरिया अधिक समझा जाने लगा है। निजी स्कूल जो कभी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रतीक माने जाते थे। अब अभिभावकों की जेब पर बोझ बनते जा रहे हैं। अभिभावकों को कुछ सस्ते विकल्प चुनने की आजादी दी जाए साथ ही स्कूल प्रबंधन और प्रकाशनों के बीच साठ-गांठ की जांच के लिए एक स्वतंत्र तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।
शिक्षा का मकसद ज्ञान बांटना है ना की कमाई को लूटना है। निजी स्कूलों को यह समझना होगा कि उनकी जिम्मेदारी केवल मुनाफा कमाना नहीं, बल्कि समाज के प्रति जवाब देही भी है। जब तक इस लूट पर लगाम नहीं लगेगी तब तक शिक्षा का असली उद्देश्य अधूरा ही रहेगा। सरकार से निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने और शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने की अभिभावकों ने अपील की है। उनका कहना है कि शिक्षा एक बुनियादी अधिकार है और इसे व्यवसाय नहीं बनाया जाना चाहिये।