बीबी सिंह
प्रतापगढ़। सनातन धर्म में आस्था, विश्वास व गूढ़ जानकारी रखने वाले शांडिल्य दुर्गेश ने प्रभु हनुमान जी के स्वरूप व कार्य को विज्ञान के माध्यम से स्पष्ट करने का एक प्रयास किया है। शांडिल्य दुर्गेश के अनुसार श्री हनुमान चालीसा में एक बहुत महत्वपूर्ण चौपाई है- “सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥” -हनुमान जी की यह विराट और सूक्ष्म रूप धारण करने की शक्ति उनकी अष्ट सिद्धियों में से दो महत्वपूर्ण सिद्धियां हैं- महिमा (विशाल रूप) और अणिमा (सूक्ष्म रूप)है। यह क्षमता उन्हें हर प्रकार की परिस्थिति का सामना करने और भगवान राम के कार्यों को सफलतापूर्वक संपन्न करने में सहायक सिद्ध हुई। हनुमान जी का सूक्ष्म और विराट रूप मानव चेतना और ऊर्जा की उच्चतम संभावनाओं के प्रतीक हैं।
वास्तव में अणिमा और महिमा सिद्धियाँ, क्वांटम युग की कल्पनाओं से भी परे है जो यह दर्शाती है कि सनातन ऋषियों का विज्ञान अपने अनुभव, ध्यान और साधना द्वारा आज के विज्ञान से हजारों वर्ष पहले ही इन क्षमताओं को समझ चुका था। ब्रह्मांड में मौलिक कण वास्तव में ऊर्जा की अति-सूक्ष्म ‘स्ट्रिंग’ हैं जो निरंतर कंपन कर रही हैं। इन स्ट्रिंग्स की कंपन की आवृत्ति और तरंग रूप ही यह निर्धारित करते हैं कि कोई कण क्या है?अर्थात् कंपन का तरीका बदलने से कण की प्रकृति बदल जायेगी। हनुमान जी यदि अपने शरीर की स्ट्रिंग्स की कंपन आवृत्ति बदलते हैं तो वे अपने शरीर का आकार, द्रव्यमान, घनत्व और यहाँ तक कि आयाम तक नियंत्रित कर सकते हैं। वे अपनी स्ट्रिंग्स की कंपन आवृत्तियों को बदलकर ही सूक्ष्म बनते हैं, विराट बनते हैं, अदृश्य हो जाते हैं या अद्भुत वेग से विचरण करते हैं।
हनुमान जी की यह शक्ति केवल चमत्कार मात्र ही नहीं, बल्कि ऊर्जा-नियंत्रण की पराकाष्ठा है। उनकी चेतना इतनी उच्च स्तरीय है कि वे अपने ऊर्जात्मक कंपन को बदलकर किसी भी रूप या आयाम को धारण कर सकते हैं। प्रभु हनुमान जी का यह विराट व सूक्ष्म स्वरूप वेव-पार्टिकल डुअलिटी (प्रकृति में कुछ कणों की प्रकृति दोहरी होती है, वे कण और तरंग दोनों रूपों में कार्य करते हैं) से मेल खाता हुआ माना जा सकता है जो यह दर्शाता है कि एक ही अस्तित्व को दो विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है। राम नाम और हनुमान जी के बीच की चेतन प्रतिक्रिया का वैज्ञानिक रूप से सबसे निकटतम समकक्ष क्वांटम एंटैंगलमेंट है। क्वांटम एंटैंगलमेंट एक ऐसी अवस्था है, जब दो या अधिक कण आपस में इतनी गहराई से जुड़े होते हैं कि चाहे वे कितनी भी दूरी पर हों। यदि एक कण में कोई परिवर्तन होता है तो दूसरे में भी तुरंत वैसा ही परिवर्तन हो जाता है। हमारे प्रभु श्री राम व हनुमान जी भी ऐसे जुड़ें हैं कि जब भी कोई राम भक्त संकट में “राम” या “हे राम” नाम का उच्चारण करता है तो प्रभु हनुमान जी उसके पुकार को अवश्य सुनते हैं। भले ही यह विज्ञान कणों तक सीमित हो लेकिन सनातन सिद्धांतों में यह चेतनाओं तक फैला हुआ है जो यह दर्शाता है कि ब्रह्मांडीय नियम केवल भौतिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक भी हैं।